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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

आभार- हिंदी कविता(Aabhar)

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                                               आभार                       मम्मी की जान वो;                       तो पापा की वो परी,                       सब की लाडली;                       बड़े नाज़ से पली ।                       गोद से मेरी उतर,                       जब तू कदम चलने लगी,                       कैसे भेजूं दूर तुझे ,                       यह चिंता खलने लगी ।                      तेरी छोटी हर बात को,                      क्या कोई सुन पाएगा ?                      जैसे रखती मैं तेरा,                      क्या कोई ख्याल रख पाएगा?                       इन प्रश्नों के उत्तर की,                       मुझे मिली वो मंजिल है ।                       बेहतर सुरक्षित शुभारंभ,                       जिसे भूलना मुश्किल है ।                       एक समर्पण एक प्रयास,                       जो आपने की है शुरुआत।                         नन्हे भविष्य होते साकार,                       सपनों को मिलता आकाश।                      अपनापन अपनों का प्यार,                      शब्द नह

नारी शक्ति (Naari Shakti)

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नारी शक्ति शक्ति भी तू , भक्ति भी तू, तू मान है  महान  है, प्रेम का सागर है तू , तू गुणों की खान है। स्नेह वात्सल्य वाहिनी, तू ही है जीवन दायनी, भाव का भंडार तू, तेरी जान से जहान है। कोमल मधुर मधुरिमा, ब्रह्मांड में तू अग्रिमा, अर्धांगिनी पुत्री या मां, तेरे मान में सम्मान है। अपार शक्ति संचिता, देवी स्वरूप अंकिता, सर्वश्रेष्ठ निर्माण तू , तू असीमित ज्ञान है। नारी तुझे प्रणाम है।। नारी तुझे प्रणाम है।। Dr.Anshul Saxena

रिश्तों के पत्ते (Rishton ke Patte)

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रिश्तों के पत्ते   वक्त की शाखाओं पे, रिश्तों के कुछ पत्ते,  जिंदगी करते बयां, शाखों से जब झड़ते,  कुछ सुनहरे सुर्ख तो, कुछ मायूस सूखे से,  कुछ बड़े अनमोल थे तो कुछ बड़े सस्ते।  जब थे हरे मुस्काते थे,  तूफां भी सह जाते थे,  हो गए कमजोर अब, गिरते ये सोचते,  जाएगी जिस रुख़ भी हवा, जाएंगे उस रस्ते।  जो कभी कोमल सा था, अब था कड़क एहसास,  गिरना तो लाज़मी ही था; जब भी हुआ टकराव,  जल जाए ढेर में या, दब जाएं पांव से,  सब बिखरे अलग-थलग, कौन किसके वास्ते।  कुछ लिए तीखी कसक, कुछ लिए धीमी सिसक,  चाहा अगर फिर भी मगर, शाख ना पाए पकड़,  गिरते नहीं झड़ते नहीं, यूं न मुरझाते,  मिलती जो बारिश उन्स की, कुछ और टिक जाते॥ -- Dr.Anshul Saxena