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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

एक सार/ Ek saar

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  जीवन का एक सार लिए, कुछ बातों का भार लिए, हम कड़वाहट को पीते हैं, और हंस के जीवन जीते हैं।। कुछ लोग यह जान नहीं पाते, क्या होते हैं रिश्ते नाते, बेवजह की गुत्थमगुत्थी में, वो हारे हैं या जीते हैं।। क्या लाये क्या ले जाओगे, जो बाँटोगे वो पाओगे, कभी-कभी दिल को चुप कर, हम होठों को सीते हैं।। और हंस के जीवन जीते हैं।। Dr. Anshul Saxena 

Khwaish ( ख्वाहिश)

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  ये उम्र ढल रही है एक शाम की तरह, मिट ना जाये रेत पर एक नाम की तरह, ख्वाइशों का परिंदा कुछ ऐसे उड़ रहा,  लत हो जैसे जीने की एक जाम की तरह।। Dr. Anshul Saxena 

माँ-बाप (Maa-Baap)

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              माँ-बाप माँ-बाप जिन्हें चलना बोलना सिखाते हैं, क्यों बड़े हो बच्चे उन से ही बड़े हो जाते हैं? जो निःस्वार्थ त्याग कर इनका जीवन बनाते हैं  क्यों उन की परवरिश पर बच्चे सवाल उठाते हैं? जब हम गिर जाते थे,  यही हमें उठाते थे। जब हम रुक जाते थे, यही हमें बढ़ाते थे। बच्चों का यह कहना दिल छलनी कर जाता है, अरे, आपको उठना बैठना भी नहीं आता है। जो बच्चों पे अपना जीवन लुटाते हैं लेते नहीं कुछ बस दुआएं दे जाते हैं उनकी सेवा से बच्चे क्यों हिचकिचाते हैं? उनके जीवन कैसे निजी हो जाते हैं? वो कभी नहीं थके, ताकि हम हँस सकें। वो कभी नहीं रुके, ताकि हम बढ़ सकें। उनका दिल बार-बार तार-तार हो जाता है, जब बच्चे कहें आपको इतना भी नहीं आता है। माँ-बाप का किया तो फ़र्ज बताते हैं, जो खुद करें उसे बार-बार जताते हैं। सब कुछ लुटा के जो बच्चों को बनाते हैं, क्यों वो ही दर-दर की ठोकरें खाते हैं? संभल जाओ लाडलों वक़्त है अभी, एक बार जो गए फिर ना आएंगे कभी, तब तुम समझोगे जुदाई क्या है? पूछते हो आपने किया ही क्या है? माँ-बाप  का कर्ज़ कभी चुका ना सकोगे, असम्मान कर कहीं मान प

तानाशाही (Tanashahi)

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  नौकर ये सरकार के या नौकरी सरकारी। गैर कानूनी काम करें कानून के अधिकारी। सरेआम धमकियां देते हैं बन बैठे तानाशाही। न्याय मांगने वालों पर अन्याय हो रहा भारी।।

खुदगर्ज़ (Khudgarz)

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   Khudgarz कर सोच समझकर हाल-ए-दिल बयां, सौदा करेगा फ़िर तेरे दर्द का जहाँ, पीठ चढ़ तेरी जो कद तेरा पूछें, उम्मीद क्या उनसे खुदग़र्ज़ हों जहां।।

दीवाने (Deewane)

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दीवाने (Deewane) कुछ दीवानों को क्यों यकीं नहीं होता, कहते हैं अब कोई इतना हंसी नहीं होता। जुल्फों में जिसकी सावन की घटा हो, लंबा सा पल्लू काँधे से सटा हो, जो उठा दे निगाहें तो दिल धड़क जाए, छूले ज़रा सा तो शोले दहक जाएं, पहले जो होता था क्यों अब नहीं होता? इन आशिक़ दीवानों को कोई तो समझाए, आते जाते नारी से ये नजरें हटाएं।। नज़ाकत भी है शोखी भी है जैसे कोई ग़ज़ल, कुछ नज़र का फ़ेर है कुछ समय गया बदल, समय बदल गया नारी गई बदल तुम भी बदल जाओ और जाओ अब संभल, दिल को संभालो ज़रा ना जाए ये फ़िसल मिल जाएगा सबक अगर तुम गए मचल। हां, अब तक जो होता आया वह अब नहीं होता। पर ऐसा नहीं कि अब कोई हंसी नहीं होता।।

क़त्ल (Katl)

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 क़त्ल (Katl) बाहर शोर और मेला है, अंदर मन मौन अकेला है, जब अंदर यह घबराता है, एक खंजर खून बहाता है। रोक लो खून को बहने से, अपनों को घायल होने से, अनजाने में अपनों का कोई, अपना कातिल बन जाता है।। कोई भरा हुआ है भावों से, बस भावुक सा हो जाता है, तुम ना समझे तो क्या होगा, यह सोच के वो कतराता है।। थोड़ा हंस लो थोड़ा सह लो, कुछ वो कह दे कुछ तुम कह लो, किसका क्या चला जाता है, ग़र इक जीवन बच जाता है।।

असली खुशी (Asli Khushi)

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कहानी :असली खुशी किरदार:  दिवाकर सिन्हा और मोहन यह कहानी दो ऐसे व्यक्तियों पर आधारित है जिनकी सोच एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत थी। एक दिवाकर सिन्हा जो सरकारी अध्यापक हैं। दूसरा मोहन जो एक छोटी सी कंपनी में कोई छोटा मोटा काम करता है।  दिवाकर वर्मा जी कुछ परेशान से अपने घर में इधर-उधर टहलते हुए अपने किसी दोस्त से फोन पर बातचीत करते हुए कहते हैं," अरे यार यह कोरोना ने कहां फंसा दिया? थोड़ी बहुत ट्यूशन आ रही थी वह भी आना बंद हो गई। ना कहीं आ सकते हैं न जा सकते हैं। खुद भी घर में बंद हो गये। इधर मेरी धर्मपत्नी भी इस बात को लेकर काफी परेशान है कि उन को मंदिर जाने को नहीं मिल रहा। और सही बात  भी है पूजा-पाठ के बिना मन को शांति कैसे मिले?" बातचीत में उनके दोस्त ने उधर से कुछ कहा जिसके उत्तर में दिवाकर जी बोले क्या बात कर रहे हो तुम्हारा धंधा भी मंदा हो गया? लाखों का धंधा हजारों में आ गया। पता नहीं कोरोनावायरस क्या क्या दिन दिखाएगा?"  फोन पर बातचीत करते-करते दिवाकर को कुछ संगीत की ध्वनि सुनाई दी जो उन के घर के पीछे बने छोटे से घर से आ रही थी। यह घर मोहन का था जो एक किसी कंपनी में छ

सासू माँ

मेरे अल्हड़पन को गले से लगाना, बातों पर मेरी मुस्कुराते जाना, ना झल्लाना ना चिल्लाना, गलतियों को भी प्यार से बताना। कर्म भी पूजें धर्म भी पूजें, हर रिश्ते को प्यार से सीचें, सौम्य व्यवहार से सबको खींचे, अपनापन कोई इनसे सीखें।। बोली में जैसे मिश्री हो घोली, अनूठा व्यक्तित्व जैसे रंगोली, त्योहार हैं इनसे दिवाली या होली, प्यार से भरती सबकी झोली।। सहनशीलता का रूप है जो, ममता का अतुल स्वरूप है वो, आंचल में जिसके स्नेह का जहां है, वो कोई और नहीं मेरी सासू मां है।। Dr. Anshul Saxena 

माँ (Maa)

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माँ पापड़ चिप्स बड़ी अचार, मां के हाथ में स्वाद हजार, दुनिया का कोई बाजार, बेच ना पाए मां का प्यार। वो सिर पर हथेली, वो पूजा की थाली, मां की दुआएं, जाती न खाली। ममता की महिमा तो गीता का सार पावन है जैसे हो गंगा की धार।। घर में हो मां तो गले से लगाना उसके हृदय को कभी ना दुखाना। किस्मत से मिलता है मां का दुलार सिर माथे रखना दे खुशियां अपार। चाहे जितना कमा लो लगा लो भंडार ममता का ऋण रहे सब पर उधार।। जीवन में मां, ना मिलेंगी हजार। मां का ही मोल, सब दौलत बेकार। डाॅ. अंशुल सक्सेना  

दूरी और मजबूरी

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आज देश भर में फैल रहे कोरोनावायरस से हुए लॉक डाउन के कारण लोगों में खुद को सुरक्षित रखने का एक डर सा बैठ गया है। सुरक्षा की दृष्टि से रखी जाने वाली दूरी लोगों की मजबूरी भी बनती जा रही है। प्रस्तुत है आज की कविता   दूरी और मजबूरी कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया, अपनों को अपनों से दूर कर दिया। खुद की फिक्र ने बेटे को ऐसा डराया, पिता का भी अंतिम संस्कार न कर पाया, नर्स माँ ने बच्चे को गले नहीं लगाया, कोई रह गया अकेला परिवार से ना मिल पाया, एक बदलाव सोच में जरूर कर दिया। कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।। खुद से खुद का मिल गया पता, बरसों से जो दबा था सब दिया जता, सच के आईने ने हक़ीकत ये दी बता, पैसे से वक्त कीमती सबको लगा पता, झूठे दिखावों को चकनाचूर कर दिया। कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।। वो करें पहल उम्मीद ये छोड़ो, जिस राह लगता दिल उस राह दिल मोड़ो, ऊंची अगर अहम की दीवार वो तोड़ो, टूटते और छूटते रिश्तो को अब जोड़ो, ऐसा क्या जिंदगी ने क़सूर कर दिया। कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।। Dr. Anshul Saxena

परवाह (Parvah)

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आज संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस से फैला संक्रमण चिंता का विषय बना हुआ है। सुरक्षा की दृष्टि से देश भर में किये गये लॉक डाउन से कोई भूख से जूझ रहा है तो कोई अकेलेपन से जूझ रहा है। कोई व्यस्त है तो कोई खालीपन से जूझ रहा है। ऐसे में हम सभी दूर रहते हुए एकजुट रहकर यदि कुछ कर सकते हैं तो वह है परवाह। तो इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत है आज की हिंदी कविता   परवाह यह जीवन रैन बसेरा है, सुख दुख का यहां डेरा है, मर कर तुम साथ चलो ना भले, जीते जी साथ निभा देना।। कहीं परिवारों का मेला है, कोई अपना दूर अकेला है, तुम पास भले ना जा पाओ, पर दूर से साथ निभा देना।। भावों में कोई बह जाए तो तुम बाँध बना देना।। तन से साथ रहो न भले, पर मन से साथ निभा देना।। कहीं तड़प है भूखे पेटों की, कहीं कमी नहीं है नोटों की, जिससे जितना बन पाये, उन भूखों तक पहुंचा देना।। मानवता की खेती का, इस धरती पर जहाँ सूखा हो, प्रेम दया के मेघों को, उस धरती पर बरसा देना।। Dr. Anshul Saxena

अधर्म

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आज की मेरी कविता कोरोना वायरस से फैले संक्रमण के कारण संपूर्ण देश में हुए लॉक डाउन में भी हुई साधुओं की निर्मम हत्या के ऊपर है। यह घटना बहुत ही हृदय विदारक है और मानवता के ऊपर एक प्रश्न चिन्ह है।आख़िर लोग इतने निर्दयी कैसे होते जा रहे हैं? धरती फिर से लाल हो गई, पाप अधर्म के वारों से। फिर मानवता हार गयी, इन निर्मम हत्यारों से।। पत्थर मारें लाठी मारें, कहां मिले अधिकारों से। बिन सुनवाई करें फैसला अपने अत्याचारों से।। Dr. Anshul Saxena

कर्मवीर (Karmveer)

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कर्मवीर (Karmveer) आले को तलवार बना, जो रोज युद्ध सा लड़ते हैं। खुद का जीवन दांव पे रख, जो सब की रक्षा करते हैं। लज्जित होती मानवता जब इन पर पत्थर पड़ते हैं। सम्मान योग्य खाकी वाले जनहित में तत्पर रहते हैं शीश कटे या हाथ कटे, जो मरते दम तक लड़ते हैं। लज्जित होती मानवता जब इन पर पत्थर पड़ते हैं। करो नमन उन वीरों को कर्म से जो ना डिगते हैं। जीवन हित की शपथ ले जो कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते हैं। लज्जित होती मानवता जब इन पर पत्थर पड़ते हैं। Dr.Anshul Saxena 

बंटवारा

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अंधेरे को गले लगाते डरते हैं उजियारों से, पीठ में खंजर घोंप रहे हैं छुपे हुए गलियारों से। आजादी आजादी करते  सोच लिए गुलामों की, सीमा पर दुश्मन बेहतर है देश के इन गद्दारों से।। मुल्क़ बाँटते शर्म छोड़कर धर्म के नाम प्रचारों से, अल्लाह मालिक वो ही बचाए, ऐसे अक्ल के मारों से। कौन से हक़ को मांग रहे हो, हिंदुस्तान तुम्हारा है, हिंदुस्तान को बांटने वालों थके नहीं बटवारों से?