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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

रिश्तों के पत्ते (Rishton ke Patte)

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रिश्तों के पत्ते   वक्त की शाखाओं पे, रिश्तों के कुछ पत्ते,  जिंदगी करते बयां, शाखों से जब झड़ते,  कुछ सुनहरे सुर्ख तो, कुछ मायूस सूखे से,  कुछ बड़े अनमोल थे तो कुछ बड़े सस्ते।  जब थे हरे मुस्काते थे,  तूफां भी सह जाते थे,  हो गए कमजोर अब, गिरते ये सोचते,  जाएगी जिस रुख़ भी हवा, जाएंगे उस रस्ते।  जो कभी कोमल सा था, अब था कड़क एहसास,  गिरना तो लाज़मी ही था; जब भी हुआ टकराव,  जल जाए ढेर में या, दब जाएं पांव से,  सब बिखरे अलग-थलग, कौन किसके वास्ते।  कुछ लिए तीखी कसक, कुछ लिए धीमी सिसक,  चाहा अगर फिर भी मगर, शाख ना पाए पकड़,  गिरते नहीं झड़ते नहीं, यूं न मुरझाते,  मिलती जो बारिश उन्स की, कुछ और टिक जाते॥ -- Dr.Anshul Saxena