क़त्ल (Katl)

क़त्ल (Katl) बाहर शोर और मेला है, अंदर मन मौन अकेला है, जब अंदर यह घबराता है, एक खंजर खून बहाता है। रोक लो खून को बहने से, अपनों को घायल होने से, अनजाने में अपनों का कोई, अपना कातिल बन जाता है।। कोई भरा हुआ है भावों से, बस भावुक सा हो जाता है, तुम ना समझे तो क्या होगा, यह सोच के वो कतराता है।। थोड़ा हंस लो थोड़ा सह लो, कुछ वो कह दे कुछ तुम कह लो, किसका क्या चला जाता है, ग़र इक जीवन बच जाता है।।