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Showing posts from February, 2021

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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

हौसला (Housla)

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 नमस्कार!  जीवन का दूसरा नाम एक संघर्ष है  जीवन में  सब कुछ  आसानी से नहीं मिलता। अक्सर  सफलता  संघर्ष के साथ ही आती है। यह पंक्तियां उन लोगों के लिए है जो जीवन में अनेकों चुनौतियों का सामना करते हैं और अनेकों प्रयास करने के बाद भी जिन्हें सफलता नहीं मिलती। जिस तरह आग में जलने के बाद सोना निखरता है उसी तरह से जो व्यक्ति में निरंतर संघर्ष करते रहने से हार नहीं मानता उसे सफलता का मीठा फल जरूर मिलता है। इसलिए बिना हार माने हर व्यक्ति को हौसला रखना चाहिए क्योंकि किसी ने सही कहा है मान लिया तो हार और ठान लिया तो जीत । हौसला (Housla) जागी हैं ये आंखें  अभी सोई नहीं है, देखे थे जो सपने  यहां वो अब भी पलते हैं। शोलों पे चलने से  वो नहीं डरते, आग की लपटों में जो  हर रोज़ जलते हैं।।

एक बाल ( Ek Baal ) Part- 2

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 एक बाल (Ek Baal ) Part - 2 अब तक आपने पढ़ा शलभ शर्मा सरकारी नौकरी में कार्यरत एक बहुत ही होनहार परंतु अंतर्मुखी स्वभाव का व्यक्ति था। उम्र से पहले ही झड़ते बालों से हुये गंजेपन के कारण किसी न किसी रूप में कई बार उसके मन को आहत होना पड़ा । कैसे और कब ये जानने के लिये पढ़ें।  एक बाल (भाग एक ) अब आगे पढ़ें सुधा के घर वाले शलभ के जवाब का इंतज़ार कर रहे थे क्योंकि सुधा ने विवाह के लिए हाँ कर दी थी। इस बात ने शलभ को हैरान कर दिया और उसने सुधा से एक बार और बात करने का मन बनाया। शलभ सुधा से मिला और उसने पूछा, " क्या तुम एक ऐसे इंसान को अपना जीवनसाथी बनाना चाहोगी जिसके सिर पर बाल ना हों?" इस पर सुधा ने कहा, " जीवन साथी वह है जो जीवन भर साथ निभाए। यदि किसी के बाद में बाल चले जाएं तब क्या साथ छोड़ दिया जाएगा?" इस बात पर शलभ को यह एहसास हुआ की सुधा अन्य लड़कियों से कितनी अलग थी और शायद वह उसके जीवन में एक अलग रंग भर देगी। अंततः सुधा और शलभ का विवाह हो गया। विवाह के दौरान ही शलभ ने किसी रिश्तेदार को कहते हुए सुना लड़का तो अच्छा है लेकिन अगर उसके सिर पर बाल होते तो कुछ और ही

एक बाल (Ek Baal) Part - 1

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 एक बाल ( Ek Baal ) Part-1 यह कहानी सरकारी पद पर कार्यरत शलभ शर्मा की है जो शुरू से ही होनहार और अंतर्मुखी स्वभाव का व्यक्ति था। दिनभर के काम से थके मांदे लौटे शलभ ने सोने से पहले अपनी अलमारी में से एक किताब निकाली और उसे लेकर आराम कुर्सी पर बैठ गया। किताब खोलते ही वह अपने अतीत के पन्ने कब पलटता चला गया उसे पता ही नहीं चला।  मानो कल की ही बात थी जब उसके विवाह का विज्ञापन अख़बार में निकाला गया था। पहले दो बार में कोई उपयुक्त वधु ना मिल पाने के कारण यह तीसरी बार था जब शलभ के विवाह के लिए विज्ञापन निकाला गया था।  शलभ अपने विवाह के प्रस्तावों को देख देख कर खींझ चुका था। अच्छी नौकरी और अच्छी पढ़ाई होने के बावजूद लड़कियां उससे मिलते ही उसे अस्वीकार कर देती थीं। वजह सिर्फ एक थी - शलभ का गंजापन। शलभ के बाल उम्र से पहले ही झड़ने लगे थे। जब वह पढ़ाई कर रहा था तब से ही वह आधा गंजा हो चुका था। तब से ही शलभ लोगों के तानों और मज़ाक का शिकार बनता चला आ रहा था। हद तो तब हो गई जब उसके किसी पड़ोसी ने यह कहकर चिढ़ाया, "अंकल कब तक विज्ञापन देते रहोगे? अब शादी का विचार छोड़ दो।" अभी शलभ 30 वर्ष

Ishq ki kashmkash ( इश्क़ की कश्मक़श)

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  क़श्मक़श इश्क़ की उसे समझाना क्या, जो बिन कहे सुन ले उसे बताना क्या,  जज़्बात की ज़ुबाँ तो लफ़्ज़ों से परे है, जो महसूस ना करे उसे जताना क्या।। Dr.Anshul Saxena 

Saajish

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  Saajish ए दिल ज़रा संभल इन्हें थाम के तू रख, धड़कनों की ख्वाहिशें सुनाया नहीं करते इनका तो काम है छुप-छुपके करेंगी आंखों की साज़िशें  बताया नहीं करते।।

गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)

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  गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana) कहां गया वो गुज़रा जमाना, वो हंसना हंसाना खुशियां मनाना, अक्सर बनाकर फिर नया बहाना वो मिलना मिलाना बेवजह मुस्कुराना।।  दूर के रिश्तों को अपना बताना, शादी के घर में वो मजमे लगाना, मदद में जुट जाना फिर भी ना जताना, एक थाली में खाना और गप्पें लड़ाना।।  सिमटने लगे अब रिश्तों के दामन, फ्लैट बन गए घरों के वो आंगन, ऊंची दुकान पर फीके पकवान, झूठी तस्वीरों में नकली मुस्कान।।  तब झगड़े थे झूठे मुस्कानें सच्ची थीं , ए सी नहीं था पर गर्मियां अच्छी थीं, हम मिट्टी में खेले कपड़े भले थे मैले, मिल बांट के झेले थे सारे झमेले।।  समय के चक्कर ने हम सब को घेरा, लगता नहीं अब मेहमानों का डेरा, रख लो छुपा के यादों का ख़ज़ाना। आता नहीं जाकर गुज़रा ज़माना।। Dr. Anshul Saxena