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बेटियाँ (Betiyan)

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  बेटियाँ सबके मुकद्दर में कहाँ होती हैं। अनमोल सा मोती हैं बड़े भाग्य से होती हैं बेटियाँ सबके मुकद्दर में कहाँ होती हैं। कभी गर्भ में ही एक बेटी को मार देते हो। कभी आफताब बन 36 टुकड़ों में काट देते हो। जन्म दे एक जान को हर दर्द सहती हैं। अपनों की खातिर खुद अपनी ही जान देती हैं। अनमोल सा मोती हैं बड़े भाग्य से होती हैं बेटियाँ सबके मुकद्दर में कहाँ होती हैं। कभी शादी में बिक जाते हो कभी उन पर रौब जमाते हो। जो सबको पीछे छोड़ बस तुमसे ही जुड़ जाती हैं। तुम उस पर हाथ उठाते हो वो जीते जी मर जाती हैं। किस्मत वालों की ही बेटियाँ होती हैं जिसकी नियत ही खोटि हो उसकी किस्मत कहाँ होती है। अनमोल सा मोती हैं बड़े भाग्य से होती हैं बेटियाँ सबके मुकद्दर में कहाँ होती हैं। Dr.Anshul Saxena  Hindi Kavita- Betiyan

गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)

 गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)







कहां गया वो गुज़रा जमाना,

वो हंसना हंसाना खुशियां मनाना,

अक्सर बनाकर फिर नया बहाना

वो मिलना मिलाना बेवजह मुस्कुराना।। 


दूर के रिश्तों को अपना बताना,

शादी के घर में वो मजमे लगाना,

मदद में जुट जाना फिर भी ना जताना,

एक थाली में खाना और गप्पें लड़ाना।। 


सिमटने लगे अब रिश्तों के दामन,

फ्लैट बन गए घरों के वो आंगन,

ऊंची दुकान पर फीके पकवान,

झूठी तस्वीरों में नकली मुस्कान।। 


तब झगड़े थे झूठे मुस्कानें सच्ची थीं ,

ए सी नहीं था पर गर्मियां अच्छी थीं,

हम मिट्टी में खेले कपड़े भले थे मैले,

मिल बांट के झेले थे सारे झमेले।। 


समय के चक्कर ने हम सब को घेरा,

लगता नहीं अब मेहमानों का डेरा,

रख लो छुपा के यादों का ख़ज़ाना।

आता नहीं जाकर गुज़रा ज़माना।।

Dr. Anshul Saxena 


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