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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)

 गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)







कहां गया वो गुज़रा जमाना,

वो हंसना हंसाना खुशियां मनाना,

अक्सर बनाकर फिर नया बहाना

वो मिलना मिलाना बेवजह मुस्कुराना।। 


दूर के रिश्तों को अपना बताना,

शादी के घर में वो मजमे लगाना,

मदद में जुट जाना फिर भी ना जताना,

एक थाली में खाना और गप्पें लड़ाना।। 


सिमटने लगे अब रिश्तों के दामन,

फ्लैट बन गए घरों के वो आंगन,

ऊंची दुकान पर फीके पकवान,

झूठी तस्वीरों में नकली मुस्कान।। 


तब झगड़े थे झूठे मुस्कानें सच्ची थीं ,

ए सी नहीं था पर गर्मियां अच्छी थीं,

हम मिट्टी में खेले कपड़े भले थे मैले,

मिल बांट के झेले थे सारे झमेले।। 


समय के चक्कर ने हम सब को घेरा,

लगता नहीं अब मेहमानों का डेरा,

रख लो छुपा के यादों का ख़ज़ाना।

आता नहीं जाकर गुज़रा ज़माना।।

Dr. Anshul Saxena 


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