गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)

 गुज़रा ज़माना (Guzra Zamana)







कहां गया वो गुज़रा जमाना,

वो हंसना हंसाना खुशियां मनाना,

अक्सर बनाकर फिर नया बहाना

वो मिलना मिलाना बेवजह मुस्कुराना।। 


दूर के रिश्तों को अपना बताना,

शादी के घर में वो मजमे लगाना,

मदद में जुट जाना फिर भी ना जताना,

एक थाली में खाना और गप्पें लड़ाना।। 


सिमटने लगे अब रिश्तों के दामन,

फ्लैट बन गए घरों के वो आंगन,

ऊंची दुकान पर फीके पकवान,

झूठी तस्वीरों में नकली मुस्कान।। 


तब झगड़े थे झूठे मुस्कानें सच्ची थीं ,

ए सी नहीं था पर गर्मियां अच्छी थीं,

हम मिट्टी में खेले कपड़े भले थे मैले,

मिल बांट के झेले थे सारे झमेले।। 


समय के चक्कर ने हम सब को घेरा,

लगता नहीं अब मेहमानों का डेरा,

रख लो छुपा के यादों का ख़ज़ाना।

आता नहीं जाकर गुज़रा ज़माना।।

Dr. Anshul Saxena 


Comments

Popular Posts

गृहणी (Grahani)

नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

बेटियाँ (Betiyan)

सलीक़ा और तरीक़ा (Saleeka aur Tareeka)

सुकून (Sukoon)

तानाशाही (Tanashahi)

होली है (Holi Hai)

नव वर्ष शुभकामनाएं (New Year Wishes)

अभिलाषा: एक बेटी की

हर घर तिरंगा ( Har Ghar Tiranga)