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Showing posts from September, 2018

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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

उम्र के उस पार (Umra ke us paar)

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          उम्र के उस पार  बूढ़े या जवान? मनुष्य का जीवन उसकी आयु, शारीरिक विकास और क्षमता के अनुसार मुख्य रूप से चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। हर आयु की अपनी एक विशेषता होती है। बाल्यावस्था मासूम और चंचल होती है तो किशोरावस्था उत्सुकता और परिवर्तन लेकर आती है। युवावस्था असीम शक्ति और उत्तेजना का सूचक होती है तो वृद्धावस्था अनुभव और ज्ञान से परिपूर्ण होती है। शारीरिक क्षमता और कार्य क्षमता भले ही आयु के साथ घटती जाती है परंतु सीखने की क्षमता, इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प और आत्म शक्ति समान रूप से सभी अवस्था में मनुष्य के अंदर होना या विकसित करना संभव है। युवावस्था पार कर चुके कई लोगों का ऐसा कहना कि "अब हमारी उम्र हो चली है... अब हमसे कुछ नहीं हो पाएगा या अब कुछ नया सीखना संभव नहीं" कहीं ना कहीं निराशावादी सोच का सूचक बन जाता है। वे लोग कहीं ना कहीं अपने अनेकों अनुभवों से संभव होने वाली उपलब्धियों पर पूर्ण विराम लगा देते हैं। वे लोग अपनी उम्र को बड़ा कारण बता कर समाज का उदाहरण लेते हुए समस्त क्रियाओं को छोड़कर स्वय

उम्र और सोच- एक कहानी (Umra Aur Soch- Ek Kahani)

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उम्र और सोच- एक कहानी   सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ दो पुराने दोस्त अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे। "वो भी क्या दिन थे शर्मा लगता है कल की ही बात थी जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था और फिर पलट के वापस नहीं देखा। और आज देखो रिटायर भी हो गए। मानो वक्त गति के पंख लगाकर उड़ता ही चला गया। आज अपने बेटे विकास को देखता हूं तो अपनी छवि नज़र आती है, उसके काम करने के अंदाज में.. अब तो बस आराम करना है। मैं,तुम, खुराना और अपने कुछ दोस्त एक दूसरे के साथ अपना वक्त बिताया करेंगे क्यों सही कहा ना?" शर्मा जी:  "एकदम सही कहा वर्मा जी हा हा हा हा.." "पुराने दोस्तों से याद आया यार शर्मा अपने रमेश और किशोर कहां होंगे कैसे दिखते होंगे? अरसा हो गया उन को देखे हुए। है ना?" वर्मा जी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। तभी वर्मा जी का बेटा विकास अपना फोन लेने ड्राइंग रूम में आया और बोला, "पापा मैंने कब से आपका Facebook पर अकाउंट बनाया हुआ है आप चेक ही नहीं करते।" वर्मा जी: "अरे बेटा अब ये social media वगैरह सीखने की उम्र थोड़े ना रह गय

सच्चा गुरु (Sachcha Guru)

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गुरु वही जो सीख सिखा दे, जीने की तरकीब बता दे, जीवन पथ के अंधियारों में,  आशाओं की ज्योत जला दे।। लक्ष्य भेदकर नभ छूने सा, शंखनाद मन में करवा दे, भूले भटके अनजानों को, सही मार्ग को जो दिखला दे।। गुरु वही जो सीख सिखा दे... ज्ञान जो बाँटे बहुत मिलेंगे, गुरु कहो जिसे बहुत मिलेंगे, दृढ़ संकल्प की नवलय का नवगीत तुम्हारे ह्रदय जगा दे, पुस्तक ज्ञान से ऊपर उठ, जो जीने का उद्देश्य बता दे, कर नमन उन गुरुओं को, आदर से यह शीश नवा दे।। शिक्षा का व्यापार करे जो, स्वार्थ हेतु आघात करे जो, आशाओं और अभिलाषाओं का, निर्मम तुषारापात करे जो; कोमलता को रौंद रौंदकर, शिक्षक भक्षक बन कर जब, मर्यादा का अर्थ भुलाकर,  आदर्शों को जो झुठला दे; ऐसे ढोंगी गुरुओं को सतगुरु सत का पाठ पढ़ा दे🙏 उन अंतर्मन के रावण पर  राम नाम की विजय करा दे।।🙏 By-Dr.Anshul Saxena  इस कविता को एक बार सुनिए जरूर-