उम्र और सोच- एक कहानी (Umra Aur Soch- Ek Kahani)
उम्र और सोच- एक कहानी
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सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ दो पुराने दोस्त अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे।"वो भी क्या दिन थे शर्मा लगता है कल की ही बात थी जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था और फिर पलट के वापस नहीं देखा। और आज देखो रिटायर भी हो गए। मानो वक्त गति के पंख लगाकर उड़ता ही चला गया। आज अपने बेटे विकास को देखता हूं तो अपनी छवि नज़र आती है, उसके काम करने के अंदाज में.. अब तो बस आराम करना है। मैं,तुम, खुराना और अपने कुछ दोस्त एक दूसरे के साथ अपना वक्त बिताया करेंगे क्यों सही कहा ना?"
शर्मा जी: "एकदम सही कहा वर्मा जी हा हा हा हा.." "पुराने दोस्तों से याद आया यार शर्मा अपने रमेश और किशोर कहां होंगे कैसे दिखते होंगे? अरसा हो गया उन को देखे हुए। है ना?" वर्मा जी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
तभी वर्मा जी का बेटा विकास अपना फोन लेने ड्राइंग रूम में आया और बोला, "पापा मैंने कब से आपका Facebook पर अकाउंट बनाया हुआ है आप चेक ही नहीं करते।" वर्मा जी:"अरे बेटा अब ये social media वगैरह सीखने की उम्र थोड़े ना रह गयी है।""पापा वैसे आपको बता दूं कि रमेश अंकल रिटायरमेंट के बाद हैदराबाद शिफ्ट हो गए हैं और किशोर अंकल मुंबई में हैं। उन दोनों की प्रोफाइल मैंने चेक की थी।उन दोनों की friend request accept कर दी थी।चलिए चलता हूं ऑफिस के लिए लेट हो रहा हूं।बाय पापा बाय अंकल" यह कहते हुए विकास ऑफिस के लिए चल पड़ा।
"देखो यह ज़माना है। आजकल के बच्चों के पास ऑफलाइन लोगों के लिए टाइम नहीं है लेकिन ऑनलाइन लोगों के लिए टाइम ही टाइम है हा हा हा..और चाहते हैं हम भी इन्ही की तरह सामने वालों से सही तरीके से कनेक्ट ना होकर ऑनलाइन तमाम लोगों से कनेक्टेड रहें। हां यही बदलाव है समय के साथ। पर विकास की मदद से रमेश और किशोर को देखना चाहूंगा क्योंकि अब यह सब सीखना मेरे बस की बात नहीं" हंसते हुए वर्मा जी ने अपनी सोच शर्मा जी के समक्ष रख दी।
"यार खुराना कहां रह गया? अब तो दो दो कप चाय भी हो गई। पता नहीं कहां व्यस्त रहता है रिटायरमेंट के बाद भी", शर्मा जी ने घड़ी देखते हुए वर्मा जी से पूछा।तभी डोर बेल बजी दरवाजे पर खुराना जी थे ।" माफी चाहता हूं दोस्तों आने में थोड़ी देर हो गई।" यह कहते हुए खुराना जी अंदर आ गए। फिर आगे बोले "दरअसल एक बैडमिंटन टूर्नामेंट का अरेंजमेंट कराने में व्यस्त था।" इस पर वर्मा जी ने पूछा," कैसा टूर्नामेंट और किसके लिए? लो भाई चाय पियो और जरा विस्तार से बताओ"
खुराना जी ने बताया "यह एक बैडमिंटन टूर्नामेंट है जो सिटी क्लब द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस बार इस टूर्नामेंट में मैं भी हिस्सा ले रहा हूं। नौकरी करते हुए कभी अपनी हॉबी को समय नहीं दे पाया; अब सोचा इस हॉबी को पूरी शिद्दत से पूरा किया जाए। तो बस अब इस टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहा हूं। क्योंकि मेरे पास समय है तो सारे अरेंजमेंट कराने की जिम्मेदारी मैंने उठा ली।"
खुराना जी की इस बात पर वर्मा जी और शर्मा जी जोर जोर से हंसने लगे।वर्मा जी बोले," अब यार तुम उन युवा लोगों के साथ इस टूर्नामेंट में हिस्सा लोगे? यार अब तुम्हारी उम्र हो चुकी है रिटायर हो गए हो। अब हम लोगों के साथ वक्त बिताओ। ज़िंदगी भर काम ही तो किया है। अब थोड़ा आराम कर लो। बुरा मत मानना, यह वही बात हो गई सींग कटा के बछड़ा बनना।"
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खुराना जी वर्मा जी के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थे इसीलिए बुरा ना मानते हुए उन्होंने कहा," यार वर्मा रिटायर मुझे ऑफिस ने किया है जिंदगी ने नहीं। मैं सोचता हूं कि ज़िंदगी की कोई उम्र नहीं होती। उम्र कोई भी हो जिंदगी पूरी तरह जीनी चाहिए और यह शरीर और मस्तिष्क जितना उपयोग करेंगे उतने ही सक्रिय रहेंगे। मैंने तो अपनी धर्मपत्नी को भी इस साल शहर में होने वाली मास्टर शेफ प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया है।आखिरकार वह इतना लजीज़ और स्वादिष्ट खाना जो बनाती है और उसकी रेसिपी लाजवाब होती हैं। जिंदगी भर घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश में उलझी रही. It's better late than never. खैर संडे को यह मैच है और तुम दोनों जरूर आना।अरे मेरे उत्साहवर्धन के लिए हा हा ... चलता हूं अभी बहुत काम बाक़ी है।" चाय का कप टेबल पर रख कर ऐसा कहते हुए खुराना जी चले गए।
खुराना जी की सोच के आगे शर्मा जी और वर्मा जी के लिए कुछ भी कहना मुश्किल सा हो रहा था। थोड़ी देर के लिए एक चुप्पी सी छा गई थी।
दो दिन बाद रविवार आ गया स्थान था सिटी क्लब।
खुराना जी पूरे जोश के साथ लोगों का अभिवादन कर रहे थे और शुभकामनाएं स्वीकार कर रहे थे। तभी वर्मा जी और शर्मा जी को देखकर खुराना जी उनके पास आकर बोले, "दोस्तों जीतना मेरा मकसद नहीं। लेकिन अब जीवन के इस पड़ाव पर आकर, मैं अपनी रुचि को पूरी होते हुए देखना चाहता हूं। अपनी रुचि के लिए कुछ करना चाहता हूं ।और मैं ऑफिस की तरह मैं खुद को रिटायर नहीं करने वाला। जब तक यह जीवन है इसे पूरी तरह जीना चाहता हूं। तुम लोगों का यहां आना मेरा उत्साहवर्धन करेगा।"
टूर्नामेंट आरंभ हुआ और खुराना जी का खेल प्रदर्शन देखकर सभी दर्शक हैरान थे। कॉलेज टाइम के चैंपियन रहे खुराना जी आज भी युवाओं पर भारी पड़ रहे थे। उम्र से परे एक अद्भुत शक्ति खुराना जी के अंदर ऊर्जा का संचार कर रही थी। और वह शक्ति उनकी आत्मशक्ति थी। खुराना जी का प्रदर्शन देखकर वर्मा जी और शर्मा जी भी हतप्रभ और अवाक् रह गए। खुराना जी की आत्मशक्ति और असीम ऊर्जा वर्मा जी और शर्मा जी को भी प्रोत्साहित कर रही थी। वे दोनों ही उम्र और संभवता की सोच में लिप्त हो चुके थे।
टूर्नामेंट कब समाप्त हुआ उन्हें पता ही नहीं चला। तभी खुराना जी के विजयी होने की घोषणा ने वर्मा जी और शर्मा जी को उनकी सोच से जगा दिया। उन दोनों ने खुराना जी को गले लगा कर हार्दिक बधाई दी। उनकी आंखों से छलकते आंसू इस बात का प्रतीक थे कि खुराना जी के प्रति उन दोनों की सोच कितनी गलत थी। असंभव सा लगने वाला संभव लगने लगा था।और अब उन दोनों का अपनी सोच बदलने का सही वक्त आ गया था।
आने वाले समय में एक सोच के बदलने से वर्मा जी और शर्मा जी के जीवन में कई बदलाव आ चुके थे।
अब शर्मा जी अपने उत्कृष्ट अनुभवों को साझा करते हुए अपने बेटे का उसके व्यापार में हाथ बंटाने लगे थे। वर्मा जी अपनी वेबसाइट बनवाकर डिज़ाइनिंग और affiliate marketing के कार्य में व्यस्त हो चुके थे। सोशल मीडिया सीखने के बाद वर्मा जी ने रमेश, किशोर, शर्मा और खुराना के साथ एक गेट-टूगेदर भी प्लान कर ली थी और इन सभी पुराने दोस्तों के मिलन और ठहाकों की गूंज से सिटी क्लब सजीव हो चुका था।
खुराना जी की एक नई सोच ने कुछ पुरानी सोच को एक नया मोड़- एक नया जीवन दे दिया था।
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धन्यवाद🙏
उम्र के उस पार
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