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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

सासू माँ

मेरे अल्हड़पन को गले से लगाना, बातों पर मेरी मुस्कुराते जाना, ना झल्लाना ना चिल्लाना, गलतियों को भी प्यार से बताना। कर्म भी पूजें धर्म भी पूजें, हर रिश्ते को प्यार से सीचें, सौम्य व्यवहार से सबको खींचे, अपनापन कोई इनसे सीखें।। बोली में जैसे मिश्री हो घोली, अनूठा व्यक्तित्व जैसे रंगोली, त्योहार हैं इनसे दिवाली या होली, प्यार से भरती सबकी झोली।। सहनशीलता का रूप है जो, ममता का अतुल स्वरूप है वो, आंचल में जिसके स्नेह का जहां है, वो कोई और नहीं मेरी सासू मां है।। Dr. Anshul Saxena 

माँ (Maa)

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माँ पापड़ चिप्स बड़ी अचार, मां के हाथ में स्वाद हजार, दुनिया का कोई बाजार, बेच ना पाए मां का प्यार। वो सिर पर हथेली, वो पूजा की थाली, मां की दुआएं, जाती न खाली। ममता की महिमा तो गीता का सार पावन है जैसे हो गंगा की धार।। घर में हो मां तो गले से लगाना उसके हृदय को कभी ना दुखाना। किस्मत से मिलता है मां का दुलार सिर माथे रखना दे खुशियां अपार। चाहे जितना कमा लो लगा लो भंडार ममता का ऋण रहे सब पर उधार।। जीवन में मां, ना मिलेंगी हजार। मां का ही मोल, सब दौलत बेकार। डाॅ. अंशुल सक्सेना