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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

संहार- कलयुग के रावण का

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     पराक्रमी और अभिमानी, दंभी पंडित और ज्ञानी, मर्यादा को हरने वाला, उस युग में राम से मरता है।। सत्य धर्म की अमर विजय को  जन-जन स्मरण करता है, न्याय धर्म की रक्षा हेतु, अब कोई राम ना बढ़ता है। त्रेता युग का रावन तो  इस युग में भी मरता है। कलयुग के रावण का क्या  जो गली गली में पलता है।। नैतिकता का करे पतन  मर्यादा का उल्लंघन पापी,दुष्ट,दुराचारी दुष्कर्म से जो ना डरता है। सत्य असत्य की आंख मिचोली, धर्म न्याय की लगती बोली, मन से रावण पहन मुखौटा, हनन मान का करता है।। कलयुग के हर रावण का  आओ मिल संहार करें।। विजयदशमी के अवसर को, सार्थक और साकार करें, श्रीराम से ले प्रेरणा, कलयुग का उद्धार करें। मानवता के धर्म का पालन , हर जन का कर्म ये बनता है, सतकर्म धर्म को माने जो, हर जन्म सफल वो करता है।। By:Dr.Anshul Saxena