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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

संहार- कलयुग के रावण का















    


पराक्रमी और अभिमानी,
दंभी पंडित और ज्ञानी,
मर्यादा को हरने वाला,
उस युग में राम से मरता है।।

सत्य धर्म की अमर विजय को 

जन-जन स्मरण करता है,
न्याय धर्म की रक्षा हेतु,
अब कोई राम ना बढ़ता है।

त्रेता युग का रावन तो 

इस युग में भी मरता है।
कलयुग के रावण का क्या 
जो गली गली में पलता है।।

नैतिकता का करे पतन 

मर्यादा का उल्लंघन
पापी,दुष्ट,दुराचारी
दुष्कर्म से जो ना डरता है।

सत्य असत्य की आंख मिचोली,

धर्म न्याय की लगती बोली,
मन से रावण पहन मुखौटा,
हनन मान का करता है।।

कलयुग के हर रावण का 

आओ मिल संहार करें।।
विजयदशमी के अवसर को,
सार्थक और साकार करें,
श्रीराम से ले प्रेरणा,
कलयुग का उद्धार करें।

मानवता के धर्म का पालन ,

हर जन का कर्म ये बनता है,
सतकर्म धर्म को माने जो,
हर जन्म सफल वो करता है।।

By:Dr.Anshul Saxena














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