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Showing posts from November, 2018

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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

याद-पीहर की

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                याद-पीहर की  बचपन को जहाँ बोया था मैंने, यादों को जहाँ संजोया था मैंने, लाँघ वो दहलीज़ पीहर छोड़ा था मैंने, जब एक अटूट बंधन जोड़ा था मैंने, हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।। बरसों बरस जहाँ बिता दिये मैंने, बरसों से वो आंगन देखा नहीं मैंने, मन की चिररइया जब तब वहां घूम आती है, कभी कभी आँख जब झपकी लगाती है।। वो मोड़ वो राह तब छोड़ दी मैंने, ज़िम्मेवारी की चादर जब ओढ ली मैंने, वो हंसी ठिठोली आज भी बड़ा गुदगुदाती है, बीते हुए लम्हों की जब आवाज़ आती है।। भाई बहन वो बिछड़ी सहेली, झूठी शिक़ायतों वाली मीठी सी बोली, तपते बुख़ार में पिता की हथेली,  माँ की स्नेह और परवाह वाली झोली, कौन सी बेटी ये भूल पाती है पीहर की डोर कब छूट पाती है।। हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।।   By:- Dr. Anshul Saxena

माँ -बेटी (Maa- Beti)

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 इस जहां का दिया हर जुल्म उठा जाऊंगी मैं,  जब बुलाएगी तू मुझे दौड़कर आऊंगी मैं,  हर दर्द की आंधी से तुझको बचा लाऊंगी मैं,  तेरी सुरक्षा के लिए तूफ़ान सह जाऊंगी मैं।  तेरे सुकून के लिए कई रात जग जाऊंगी मैं,  आंख बंद हो या खुली बस तुझे पाऊंगी मैं,  तेरी मुस्कुराहट के लिए हर दर्द सह जाऊंगी मैं,  उज्जवल भविष्य तुझको मिले और क्या चाहूंगी मैं।।  छोटी सी तेरी जीत से हर जीत जीत जाऊंगी मैं,   तेरी बोली तेरे भाव सबको समझाऊंगी मैं,  आत्मनिर्भर तू बने कुछ ऐसा कर जाऊंगी मैं,  फिर रहूं या ना रहूं बस धैर्य को पाऊंगी मैं।।  मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे हर जगह जाऊंगी मैं,  हर सजदे में शीश नवा आशीष दे जाऊंगी मैं  तेरे जन्म से मुझको नया जन्म मिला है  इस जन्म को अंत तक तेरे नाम कर जाऊंगी मैं।। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏  By-Dr.Anshul Saxena