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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

याद-पीहर की

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                याद-पीहर की  बचपन को जहाँ बोया था मैंने, यादों को जहाँ संजोया था मैंने, लाँघ वो दहलीज़ पीहर छोड़ा था मैंने, जब एक अटूट बंधन जोड़ा था मैंने, हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।। बरसों बरस जहाँ बिता दिये मैंने, बरसों से वो आंगन देखा नहीं मैंने, मन की चिररइया जब तब वहां घूम आती है, कभी कभी आँख जब झपकी लगाती है।। वो मोड़ वो राह तब छोड़ दी मैंने, ज़िम्मेवारी की चादर जब ओढ ली मैंने, वो हंसी ठिठोली आज भी बड़ा गुदगुदाती है, बीते हुए लम्हों की जब आवाज़ आती है।। भाई बहन वो बिछड़ी सहेली, झूठी शिक़ायतों वाली मीठी सी बोली, तपते बुख़ार में पिता की हथेली,  माँ की स्नेह और परवाह वाली झोली, कौन सी बेटी ये भूल पाती है पीहर की डोर कब छूट पाती है।। हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।।   By:- Dr. Anshul Saxena

माँ -बेटी (Maa- Beti)

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 इस जहां का दिया हर जुल्म उठा जाऊंगी मैं,  जब बुलाएगी तू मुझे दौड़कर आऊंगी मैं,  हर दर्द की आंधी से तुझको बचा लाऊंगी मैं,  तेरी सुरक्षा के लिए तूफ़ान सह जाऊंगी मैं।  तेरे सुकून के लिए कई रात जग जाऊंगी मैं,  आंख बंद हो या खुली बस तुझे पाऊंगी मैं,  तेरी मुस्कुराहट के लिए हर दर्द सह जाऊंगी मैं,  उज्जवल भविष्य तुझको मिले और क्या चाहूंगी मैं।।  छोटी सी तेरी जीत से हर जीत जीत जाऊंगी मैं,   तेरी बोली तेरे भाव सबको समझाऊंगी मैं,  आत्मनिर्भर तू बने कुछ ऐसा कर जाऊंगी मैं,  फिर रहूं या ना रहूं बस धैर्य को पाऊंगी मैं।।  मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे हर जगह जाऊंगी मैं,  हर सजदे में शीश नवा आशीष दे जाऊंगी मैं  तेरे जन्म से मुझको नया जन्म मिला है  इस जन्म को अंत तक तेरे नाम कर जाऊंगी मैं।। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏  By-Dr.Anshul Saxena 

संहार- कलयुग के रावण का

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     पराक्रमी और अभिमानी, दंभी पंडित और ज्ञानी, मर्यादा को हरने वाला, उस युग में राम से मरता है।। सत्य धर्म की अमर विजय को  जन-जन स्मरण करता है, न्याय धर्म की रक्षा हेतु, अब कोई राम ना बढ़ता है। त्रेता युग का रावन तो  इस युग में भी मरता है। कलयुग के रावण का क्या  जो गली गली में पलता है।। नैतिकता का करे पतन  मर्यादा का उल्लंघन पापी,दुष्ट,दुराचारी दुष्कर्म से जो ना डरता है। सत्य असत्य की आंख मिचोली, धर्म न्याय की लगती बोली, मन से रावण पहन मुखौटा, हनन मान का करता है।। कलयुग के हर रावण का  आओ मिल संहार करें।। विजयदशमी के अवसर को, सार्थक और साकार करें, श्रीराम से ले प्रेरणा, कलयुग का उद्धार करें। मानवता के धर्म का पालन , हर जन का कर्म ये बनता है, सतकर्म धर्म को माने जो, हर जन्म सफल वो करता है।। By:Dr.Anshul Saxena

उम्र के उस पार (Umra ke us paar)

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          उम्र के उस पार  बूढ़े या जवान? मनुष्य का जीवन उसकी आयु, शारीरिक विकास और क्षमता के अनुसार मुख्य रूप से चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। हर आयु की अपनी एक विशेषता होती है। बाल्यावस्था मासूम और चंचल होती है तो किशोरावस्था उत्सुकता और परिवर्तन लेकर आती है। युवावस्था असीम शक्ति और उत्तेजना का सूचक होती है तो वृद्धावस्था अनुभव और ज्ञान से परिपूर्ण होती है। शारीरिक क्षमता और कार्य क्षमता भले ही आयु के साथ घटती जाती है परंतु सीखने की क्षमता, इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प और आत्म शक्ति समान रूप से सभी अवस्था में मनुष्य के अंदर होना या विकसित करना संभव है। युवावस्था पार कर चुके कई लोगों का ऐसा कहना कि "अब हमारी उम्र हो चली है... अब हमसे कुछ नहीं हो पाएगा या अब कुछ नया सीखना संभव नहीं" कहीं ना कहीं निराशावादी सोच का सूचक बन जाता है। वे लोग कहीं ना कहीं अपने अनेकों अनुभवों से संभव होने वाली उपलब्धियों पर पूर्ण विराम लगा देते हैं। वे लोग अपनी उम्र को बड़ा कारण बता कर समाज का उदाहरण लेते हुए समस्त क्रियाओं को छोड़कर स्वय

उम्र और सोच- एक कहानी (Umra Aur Soch- Ek Kahani)

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उम्र और सोच- एक कहानी   सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ दो पुराने दोस्त अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे। "वो भी क्या दिन थे शर्मा लगता है कल की ही बात थी जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था और फिर पलट के वापस नहीं देखा। और आज देखो रिटायर भी हो गए। मानो वक्त गति के पंख लगाकर उड़ता ही चला गया। आज अपने बेटे विकास को देखता हूं तो अपनी छवि नज़र आती है, उसके काम करने के अंदाज में.. अब तो बस आराम करना है। मैं,तुम, खुराना और अपने कुछ दोस्त एक दूसरे के साथ अपना वक्त बिताया करेंगे क्यों सही कहा ना?" शर्मा जी:  "एकदम सही कहा वर्मा जी हा हा हा हा.." "पुराने दोस्तों से याद आया यार शर्मा अपने रमेश और किशोर कहां होंगे कैसे दिखते होंगे? अरसा हो गया उन को देखे हुए। है ना?" वर्मा जी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। तभी वर्मा जी का बेटा विकास अपना फोन लेने ड्राइंग रूम में आया और बोला, "पापा मैंने कब से आपका Facebook पर अकाउंट बनाया हुआ है आप चेक ही नहीं करते।" वर्मा जी: "अरे बेटा अब ये social media वगैरह सीखने की उम्र थोड़े ना रह गय

सच्चा गुरु (Sachcha Guru)

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गुरु वही जो सीख सिखा दे, जीने की तरकीब बता दे, जीवन पथ के अंधियारों में,  आशाओं की ज्योत जला दे।। लक्ष्य भेदकर नभ छूने सा, शंखनाद मन में करवा दे, भूले भटके अनजानों को, सही मार्ग को जो दिखला दे।। गुरु वही जो सीख सिखा दे... ज्ञान जो बाँटे बहुत मिलेंगे, गुरु कहो जिसे बहुत मिलेंगे, दृढ़ संकल्प की नवलय का नवगीत तुम्हारे ह्रदय जगा दे, पुस्तक ज्ञान से ऊपर उठ, जो जीने का उद्देश्य बता दे, कर नमन उन गुरुओं को, आदर से यह शीश नवा दे।। शिक्षा का व्यापार करे जो, स्वार्थ हेतु आघात करे जो, आशाओं और अभिलाषाओं का, निर्मम तुषारापात करे जो; कोमलता को रौंद रौंदकर, शिक्षक भक्षक बन कर जब, मर्यादा का अर्थ भुलाकर,  आदर्शों को जो झुठला दे; ऐसे ढोंगी गुरुओं को सतगुरु सत का पाठ पढ़ा दे🙏 उन अंतर्मन के रावण पर  राम नाम की विजय करा दे।।🙏 By-Dr.Anshul Saxena  इस कविता को एक बार सुनिए जरूर-

विवाह- मेहमान और उपहार

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 शुभ विवाह संपन्न,🙏  फिर सब शुरू हो जाते हैं,  जो जाते हैं जो बुलाते हैं,   सबकी शिकायतों के  बस्ते खुल जाते हैं।।🤗  लोग क्या लाते हैं,  क्या दे जाते हैं,  आइए ऐसी टीका- टिप्पणियों का,  मिलकर लुत्फ़ उठाते हैं।।🤓 एक को बुलाओ तो, चार चार आते हैं,😏 हज़ारों लेते हैं, सौ पाँच सौ दे जाते हैं।।🙄 कुछ नकली हार भी,  सोने का बताते हैं,😎 बहुत क़ीमती है, ऐसा दिखाते हैं।😂 कुछ लोग तो पता नहीं, क्या-क्या दे जाते हैं,  अपने अन उपयोगी उपहारों को,  बड़ी शान से थमाते हैं।🙌 कुछ शादी की खुशी इस तरह मनाते हैं, एक दो नहीं आठ दस टिकाते हैं,🍻 फिर क्या देना है कुछ याद नहीं रहता, अंत में खाली लिफ़ाफ़ा ही दे आते हैं।।😂 कुछ खाने में क्या है,  ऐसी जानकारी जुटाते हैं,🍖🍔🍜🍛 ऐसे अवसर कहां बार-बार आते हैं,🍕🌭🌮🌯🍨 इसलिए एक एक चीज़ जी भर के खाते हैं।। कुछ लोग तो, पूरी थाली भर लाते हैं,🍱 फिर मिले ना मिले, इस तरह चबाते हैं।।😆 जो आते हैं उन सब से, मिल भी नहीं पाते हैं,🤔 फिर भी जो नहीं आते उनसे, नाराज़ हो जाते हैं।😏 फिर मत कहिएगा कि बताया नहीं, सभी तो म

शॉपिंग बालाएं

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  डिस्काउंट आने पर जो झूम जाती हैं,🙌 डिस्काउंट के गणित में वो घूम जाती हैं,🤔😇 एक चीज लेनी हो दस चीज लाती हैं,🤗 कभी दस में भी कुछ लिए बिना लौट आती हैं,😣 शॉपिंग इनकी जन्नत मॉल इनका स्वर्ग😃 महिलाएं या बालाएं कहां समझ आती हैं।🙅 एक ड्रेस जब दो जगह पहन जाती हैं,👗 अगली जगह उसी ड्रेस को पुराना बताती हैं, अपने जैसी ड्रेस कहीं देख आती हैं,  तो महंगी से महंगी ड्रेस ना इन्हें भाती हैं, आधे कपड़े भी ठीक से पहन नहीं पाती हैं,  फिर भी भरी अलमारी खाली बताती हैं।।🙆 कभी कहीं कभी कहीं अक्सर ये जाती हैं,  फिर भी कहां जाऊं यह सवाल उठाती हैं,🤔 आपकी हां या ना में बस इतना फर्क़ है, हां की तो जेब कटी ना में बेडा ग़र्क है, हर तर्क अंत में यह जीत जाती हैं,👧 पिता हो या पति उन्हें मना ही लाती हैं।। By:- Dr.Anshul Saxena 

शादी का कार्ड

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शादी का कार्ड इतना बलवान, आपसे ज्यादा इसका मान, जब यह मिले तभी सम्मान, ना मिले तो भ्रकुटी कमान।।😤  प्रथम निमंत्रण आपको,  पूरे करिए काम,🙏  फिर भी मेरी मानिए,  सब इतना नहीं आसान।।  कुछ मान्य लोग हैं,😎  सम्मान होना चाहिए😀  ये आएं या ना आएं,  कार्ड होना चाहिए,  घर में भीगी बिल्ली   शादी में बनें महान।।  शादी का कार्ड...... रीति रिवाज तमाम होने चाहिए, सगे-संबंधियों का नाम होना चाहिए, सपरिवार लिखना भूल गए, फिर देखें इसका परिणाम, शीत युद्ध का हो जाता ऐलान।।😲 शादी का कार्ड....... यह जिसको नहीं मिला  उस की घटती शान, मनमुटाव को मन में ठान, शिकायतों की खुले दुकान, हे भगवान हे भगवान !!🤔 मान ना मान ऐसे मेहमान।। शादी का कार्ड......🙏 By-Dr.Anshul Saxena

तस्वीरें- नयी पुरानी ( Tasveeren Nayi Purani)

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                           पहले की तस्वीरों में एक याद हुआ करती थी, दिल-अज़ीज़ लम्हों की कुछ बात हुआ करती थी, कुछ यादों के बक्सों जैसी बार-बार खुलती थी, कुछ किताब में छिपी हुई एक राज़ हुआ करती थी।। कुछ इकट्ठे एक जगह अलमारी में रहती थी, जब खुलती थी बिन बोले ही बोल उठा करती थी, हम खुद को कम और औरों को उनमें ढूंढा करते थे, धुंधली हो या धूमिल सी, बेमोल हुआ करती थी।। मानो जैसे कोई खजाना संजो संजो कर रहती थी, बार-बार तो मुश्किल थी सोच-समझकर खिंचती थी, कुछ खुशियों की लहरों जैसी दिल छुआ करती थी, कुछ बन जाती कोई कहानी कुछ खास हुआ करती थी।। अब तो हर घंटों में तस्वीर खिंचा करती हैं, यादें हों या ना हों पर तस्वीर हुआ करती हैं, एक पोज़ के ढ़ेरों पोज़ सेल्फी में मिलते हैं, मेमोरी फुल होने पर डिलीट हुआ करती हैं।। जल्दी-जल्दी क्लिक होते ही शेयर हुआ करती है डीपी और  प्रोफाइल में बार-बार ये डलती है नया ज़माना नई तस्वीर वक़्त के साथ ही ढ़लती है पल में अच्छी लगती है पल पल में बदलती है।। By-Dr.Anshul Saxena 

अनोखे नौजवान (Anokhe Naujawan)

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अनोखे नौजवान                               बैठे-बैठे खा लें इनसे                               मेहनत कौन कराए                             काला चश्मा नीची जींस                              सब पर रौब जमाएं।                            बाप की जेबें रोज ये ऐंठें                             धुआं रोज उड़ाएं                            ऐसे वैसे ऐश करा लो                             पैसे कौन कमाए।                                  सड़क के चक्कर                             लगा के  अक्सर                             खिचड़ी नई पकाएं                                         खाते ताने ये मनमाने                            फिर भी ना पछताएं।                            पढ़ाई में जीरो बनते हीरो                             फैशन इनको भाये                            कभी धुनें ये कभी पिटें ये                             ऐसे नाम कमाएं।                                        इधर दी रिश्वत उधर दी  घूस                             डिग्री लेकर आए                                          

मन की आशा

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                                                  उम्र ये ढ़लती जाती है                         सदाबहार मन रहता है                         ओझल होती आंखों में                         यादों का दर्पण रहता है।                         वो बेफ़िक्री वो चंचलता                         वो आशायें वो कोमलता                         अतीत के पन्रे पढ़ने को                         बार बार मन करता है।                        सब शिक़वे गिले मिटाने को                        सबको गले लगाने को                        थोड़े में ज्यादा पाने को                        बार बार मन करता है।                       जी भर के आज जी जाने को                       कुछ पल में सदियां लाने को                       वक़्त पे क़ाबू पाने को                       बार-बार मन करता है।                           कुछ ग़ैर हुए कुछ है अपने                      आंखों में अब भी हैं सपने                       वो सपने पूरे करने को                       बार बार मन करता है।                      मीलों का सफर तय करन

आजकल हर शख़्स व्यस्त है?

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                                                                                                         आज कल हर शख़्स व्यस्त है,               कोई हकीक़त में तो कोई यूं ही व्यस्त है,               कोई व्यस्तता में तो कोई मस्ती में मस्त है,               कहीं मजबूरी तो कहीं ज़िम्मेदारी की गिरफ़्त है।                      आज कल हर शख़्स व्यस्त है।               कौन कितना और कहां व्यस्त है?               कि वक़्त पर वक़्त देने का नहीं वक़्त है,               झूठे दिखावों पे रिश्तों की शिक़स्त है,                      आज कल हर शख़्स व्यस्त है।              कोई बहुत करके भी कुछ और करने में व्यस्त है,              कोई बेवजह वजह ढूंढने में व्यस्त है,              कोई वक़्त की सुईओं का सलीक़े से अभ्यस्त है,              कोई बेपरवाह सा मौज में अस्त व्यस्त है,                   आज कल हर शख़्स व्यस्त है।                   आज कल हर शख़्स व्यस्त है।

अंतराल- पीढ़ियों का

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                            नई पुरानी पीढ़ी के,                            मध्य का अंतराल,                            ये मिटेगा या बढ़ेगा,                            ये है  बड़ा सवाल।                           आधुनिक तकनीक और                           रोटी की भागदौड़,                           इक कश्मकश करती विवश,                           ऐसा ये मकड़जाल।                           क्या करें कैसे करें                           इस सोच से बेहाल,                           अपेक्षा और तर्क का,                           फैला हुआ जंजाल।                           नई पुरानी सोच की                           कैसे मिलाएं ताल,                           हम तुम्हें संभाल लें                           तुम लो हमें संभाल।                                              जब संग चलें तब ही चले,                          जीवन की कदमताल,                          हम तुम्हारा हैं सहारा,                          तुम हो हमारी ढ़ाल।।                           By: Dr.Anshul Saxena  

प्यार (Love)

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                                           हर चीज़ जब अच्छी लगे,                     हर बात जब सच्ची लगे,                    हार में जब जीत हो,                    और जीत में जब हार,                    समझ लेना तुम को                    होने लगा है प्यार ।                    जब भावना मंथन करें,                    समझे ना समझदार,                    रात की नींदें उड़े,                    सपने बुने हज़ार,                    समझ लेना तुम को                    होने लगा है प्यार ।                    बेसब्री से किसी का जब,                    करते हो इंतज़ार,                    दिल की धड़कनों की,                    बढ़ने लगे रफ़्तार,                    समझ लेना तुम को                     होने लगा है प्यार ।                   ख़ुद से ज़्यादा  किसी पे                    जब करते हो ऐतबार,                   इक़रार का हो इंतज़ार                    हो जाओ बेक़रार,                   समझ लेना तुम को                    हो गया है प्यार।।                   By: Dr.Anshul

ऑनलाइन ज़माना

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                          ऑफलाइन का गया ज़माना                           ऑनलाइन सब होता है                           'ढिंचक' सा कुछ भी कर दो                            ऐंवई हिट वो होता है।😀                           अच्छे लेख को कौन पढ़े,                           सिर से पार निकलता है ,🙆                           कॉपी पेस्ट फॉरवर्ड करो,                           नकली माल ही चलता है ।                                           गंदे मज़ाक,भद्दी बातें,                           हास्य के नाम यह चलता है,                           ऊंची बातें और कोरा ज्ञान,🤔                          'बस' ऑनलाइन ही मिलता है।                               लाइक फॉर लाइक फॉलो फॉर फॉलो,👍                          इस रेस में आगे चलता है,💃                          वो पीछे रह जाता यारा,                          जो अच्छा बेहतर चुनता है।                         लोकप्रिय तुम,या गुनी हो,🤓                         लाइक पे निर्भर करता है,                         कला आदमी

नेता और अधिकारी

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            नेता और अधिकारी                                          साम दाम और दंड भेद से                        पड़ रहे सब पर भारी,                        कला  खोखली,नकली ज्ञान ,                        बन बैठे अधिकारी ।                        न्याय दिलाने बैठे थे,                        अन्याय हो रहा भारी,                        वोटों के लालच  ने कैसे,                        अकल मार दी सारी।।                        झूठ यहां अब बिकता है ,                        पैसा सबसे भारी,                        सच्चाई बतलाने वालों,                        खत्म तुम्हारी बारी।।                        मेहनत, शिक्षा औंधे मुंह,                        जेबें कर लो भारी,                        सिफारिशों का बक्सा खोलो,                        कुर्सी हुई तुम्हारी।।                        पड़ रहे सब पर भारी,                        कला  खोखली,नकली ज्ञान ,                        बन बैठे अधिकारी ।                        न्याय दिलाने बैठे थे,                        अन्याय हो रहा भारी,  

भांति भांति के लोग

  सब ज्ञान बांटने वाले, ज्ञानी नहीं हुए,  सोच थोपने वाले,अभिमानी भरे हुए,  सोच नहीं बदली , तो क्या हुए बड़े,  देश बदल रहा है, तुम हो वहीं खड़े । कुछ दिखावटी ढोंगी, तो कुछ अज्ञान भरे, अकल पे चलते औरों की, अपनी सोच परे,  बे पेंदी के लोटे जैसे, कुछ हां में हां भरे , कुछ गूंगे कुछ बहरे कुछ मूंक रहें खड़े। कोई गुणी कुछ अलग सोच,कुछ भी अलग करे, लोगों की जलन ईर्ष्या,उस पर घात करे , हम नहीं तो तुम नहीं, कुछ ऐसी सोच लिए , आगे नहीं बढ़ने देंगे, आपस में रहें भिड़े । उम्र से बढ़कर अनुभव,जीवन का पाठ पढ़े, वेद जानकर क्या होगा,ना वेदना जान सके। पुरान खंडी रिवाजों का, बस हाहाकार करे, नया नहीं सीखेंगे हम, उम्र बड़े तो बड़े । जो जानें हम वो बोले हैं,सुनने से ज्ञान बड़े,  सुनने वाले कम मिलते हैं,वक्ता भरे पड़े। सोच नहीं बदली , तो क्या हुए बड़े,  देश बदल रहा है, तुम हो वहीं खड़े ।। By:- Dr.Anshul Saxena 

बचपन और आज

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ज़िंदगी

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                कभी तू हंसाती है ,कभी तू रुलाती है ,                ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।                तुझे जीने की ख़्वाहिश रेत की तरह ,                मेरी बंद मुट्ठी से फ़िसल जाती है ,                मेरी ग़ुजारिशें तुझे थामना चाहें,                तू बड़ी रफ़्तार से चलती ही जाती है ।                ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।                क्यों हम अपनों से रूठ जाते हैं ?                क्यों ग़ैरों के साथ, तुझे हंस के बिताते हैं?                कभी तू समझ नहीं आती,                कभी तू मुझे समझ नहीं पाती है।                ए ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।                अभी तो तुझे और पाना है,                अभी अपनों को अपना बनाना है ,                कहां तेरा ठौर ठिकाना है?                मिन्नतों की दस्तक तू सुन नहीं पाती है।                ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।                चल छोड़ के शिक़वे,                 तुझे थोड़ा सा जी लूं मैं ,                तू कहां मिलने बार-बार आती है,                ता उम्र जो समझ नहीं आती ,              

अभिलाषा: एक बेटी की

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                  छल कपट से दूर जहां की,                  मेरी दुनिया अच्छी है,                  झूठ जहां ना बसता है,                  दिल की बेहद सच्ची है ।                  तेरी समझ से मेरी समझ,                  मेरी समझ में तेरी समझ,                  समझ में आना मुश्किल है,                  हर दिन मेरी नई राह है,                  दूर बड़ी ही मंजिल है।                 मेरी कोशिश मेरी क्षमता                 कोई तो पहचाने,                 कितना कुछ में जाने हूं,                 क्यों कोई ये ना जाने,                 मेरी अपनी बोली है,                 मेरी अपनी भाषा है,                 समझो मेरे भावों को,                 बस इतनी अभिलाषा है।                 बस इतनी अभिलाषा है।                 By:- Dr.Anshul Saxena