याद-पीहर की

याद-पीहर की बचपन को जहाँ बोया था मैंने, यादों को जहाँ संजोया था मैंने, लाँघ वो दहलीज़ पीहर छोड़ा था मैंने, जब एक अटूट बंधन जोड़ा था मैंने, हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।। बरसों बरस जहाँ बिता दिये मैंने, बरसों से वो आंगन देखा नहीं मैंने, मन की चिररइया जब तब वहां घूम आती है, कभी कभी आँख जब झपकी लगाती है।। वो मोड़ वो राह तब छोड़ दी मैंने, ज़िम्मेवारी की चादर जब ओढ ली मैंने, वो हंसी ठिठोली आज भी बड़ा गुदगुदाती है, बीते हुए लम्हों की जब आवाज़ आती है।। भाई बहन वो बिछड़ी सहेली, झूठी शिक़ायतों वाली मीठी सी बोली, तपते बुख़ार में पिता की हथेली, माँ की स्नेह और परवाह वाली झोली, कौन सी बेटी ये भूल पाती है पीहर की डोर कब छूट पाती है।। हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है, ईंट और दीवार की भी याद आती है।। By:- Dr. Anshul Saxena