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Showing posts from May, 2019

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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

साईं गान (Sai Gaan)

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                साईं गान साईं साईं नाम पुकारो, श्रद्धा रखो ना हिम्मत हारो। याद करो तो साईं मिलेंगे, फरियाद करो झोली भर देंगे। कृपासिंधु जग पालनकर्ता, दयामयी बंधु दुखहर्ता। प्रेम का जग को पाठ पढ़ाया ऊंच-नीच का भेद मिटाया।   श्रद्धा सबूरी साईं सार, साईं की लीला अपरम्पार। साईं आशा का आधार, साईं करते कृपा अपार।।   शरण तिहारी आए आज, साईं लगा दो बेड़ा पार। जिस हृदय साईं का नाम, साईं बनाते बिगड़े काम।   अनगिनत साईं गुणगान, सब मिल गाओ साईं गान। शीश झुका करूं कोटि प्रणाम हृदय से बोलो ऊँ साईं राम।। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 By:-Dr.Anshul Saxena  

ये उन दिनों की बात है

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ये उन दिनों की बात है, जब हम छोटे बच्चे थे, उम्र में थोड़े कच्चे थे, पर दिल के बेहद सच्चे थे।। ये उन दिनों की बात है रिश्तो में था अपनापन, सबका एक ही था आंगन, मिलजुल कर सब रहते थे, सुख-दुख सब मिल सहते थे।। ये उन दिनों की बात है अपनों के अपने सब थे, मां-बाबा में रब थे, परिवारों के मतलब थे, मिलना जुलना कम हो चाहे, दिल के बंधन पक्के थे।। ये उन दिनों की बात है... आज की बात जैसे दिन और रात जिससे मतलब उसका साथ पैसे के बिन सब है फीका माथा देखके होता टीका चलते नोट काम के रिश्ते बिना काम के खोटे सिक्के फोन में दोस्तों का मेला है फिर भी इंसान अकेला है भागदौड़ सब हो गए व्यस्त अपनों के लिए नहीं है वक्त सच्चा रंग पुराना है दिखावे का ज़माना है आज की बात निराली बात इसमें नहीं उन दोनों की बात। By: Dr. ANSHUL SAXENA