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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

ये उन दिनों की बात है





ये उन दिनों की बात है,
जब हम छोटे बच्चे थे,
उम्र में थोड़े कच्चे थे,
पर दिल के बेहद सच्चे थे।।

ये उन दिनों की बात है
रिश्तो में था अपनापन,
सबका एक ही था आंगन,
मिलजुल कर सब रहते थे,
सुख-दुख सब मिल सहते थे।।

ये उन दिनों की बात है
अपनों के अपने सब थे,
मां-बाबा में रब थे,
परिवारों के मतलब थे,
मिलना जुलना कम हो चाहे,
दिल के बंधन पक्के थे।।
ये उन दिनों की बात है...

आज की बात
जैसे दिन और रात
जिससे मतलब उसका साथ
पैसे के बिन सब है फीका
माथा देखके होता टीका
चलते नोट काम के रिश्ते
बिना काम के खोटे सिक्के
फोन में दोस्तों का मेला है
फिर भी इंसान अकेला है
भागदौड़ सब हो गए व्यस्त
अपनों के लिए नहीं है वक्त
सच्चा रंग पुराना है
दिखावे का ज़माना है
आज की बात निराली बात
इसमें नहीं उन दोनों की बात।
By: Dr. ANSHUL SAXENA 

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