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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

ज़िंदगी








               कभी तू हंसाती है ,कभी तू रुलाती है ,
               ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।

               तुझे जीने की ख़्वाहिश रेत की तरह ,
               मेरी बंद मुट्ठी से फ़िसल जाती है ,
               मेरी ग़ुजारिशें तुझे थामना चाहें,
               तू बड़ी रफ़्तार से चलती ही जाती है ।
               ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।


               क्यों हम अपनों से रूठ जाते हैं ?
               क्यों ग़ैरों के साथ, तुझे हंस के बिताते हैं?
               कभी तू समझ नहीं आती,
               कभी तू मुझे समझ नहीं पाती है।
               ए ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।


               अभी तो तुझे और पाना है,
               अभी अपनों को अपना बनाना है ,
               कहां तेरा ठौर ठिकाना है?
               मिन्नतों की दस्तक तू सुन नहीं पाती है।
               ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।


               चल छोड़ के शिक़वे, 
               तुझे थोड़ा सा जी लूं मैं ,
               तू कहां मिलने बार-बार आती है,
               ता उम्र जो समझ नहीं आती ,
               तेरी क़दर तेरे बाद आती है ।
               ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।


               कभी तू हंसाती है कभी तू रुलाती है ,
               ऐ ज़िंदगी तू कितना सताती है ।।

                Dr. Anshul Saxena

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