मन की आशा
उम्र ये ढ़लती जाती है
सदाबहार मन रहता है
ओझल होती आंखों में
यादों का दर्पण रहता है।
वो बेफ़िक्री वो चंचलता
वो आशायें वो कोमलता
अतीत के पन्रे पढ़ने को
बार बार मन करता है।
सब शिक़वे गिले मिटाने को
सबको गले लगाने को
थोड़े में ज्यादा पाने को
बार बार मन करता है।
जी भर के आज जी जाने को
कुछ पल में सदियां लाने को
वक़्त पे क़ाबू पाने को
बार-बार मन करता है।
कुछ ग़ैर हुए कुछ है अपने
आंखों में अब भी हैं सपने
वो सपने पूरे करने को
बार बार मन करता है।
मीलों का सफर तय करना है
जीते जी ऐसा करना है
मर कर भी जिंदा रहना है
बार बार मन कहता है।
Dr.Anshul Saxena
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बार बार मन करता है।