उम्र के उस पार (Umra ke us paar)

          उम्र के उस पार 

बूढ़े या जवान?


मनुष्य का जीवन उसकी आयु, शारीरिक विकास और क्षमता के अनुसार मुख्य रूप से चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। हर आयु की अपनी एक विशेषता होती है। बाल्यावस्था मासूम और चंचल होती है तो किशोरावस्था उत्सुकता और परिवर्तन लेकर आती है। युवावस्था असीम शक्ति और उत्तेजना का सूचक होती है तो वृद्धावस्था अनुभव और ज्ञान से परिपूर्ण होती है।

शारीरिक क्षमता और कार्य क्षमता भले ही आयु के साथ घटती जाती है परंतु सीखने की क्षमता, इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प और आत्म शक्ति समान रूप से सभी अवस्था में मनुष्य के अंदर होना या विकसित करना संभव है।

युवावस्था पार कर चुके कई लोगों का ऐसा कहना कि "अब हमारी उम्र हो चली है... अब हमसे कुछ नहीं हो पाएगा या अब कुछ नया सीखना संभव नहीं" कहीं ना कहीं निराशावादी सोच का सूचक बन जाता है। वे लोग कहीं ना कहीं अपने अनेकों अनुभवों से संभव होने वाली उपलब्धियों पर पूर्ण विराम लगा देते हैं। वे लोग अपनी उम्र को बड़ा कारण बता कर समाज का उदाहरण लेते हुए समस्त क्रियाओं को छोड़कर स्वयं को सक्रिय नहीं रख पाते और धीरे-धीरे निर्बल होते जाते हैं। ऐसा कहने वालों के लिए कहा गया है कि "उम्र मात्र एक नंबर है " उम्र को एक नंबर ही रहने दें उसे मानसिक अवस्था ना बनाएं । 

युवावस्था एक आयु ही नहीं बल्कि एक अवस्था का नाम है जिसमें असीम शक्ति और ऊर्जा का संचय रहता है। यदि युवावस्था के बाद भी मनुष्य अपनी आत्मशक्ति और इच्छा शक्ति को जगाए रखे तो उसके लिए किसी भी उम्र में कोई भी कार्य करना असंभव नहीं होगा और तब वह सही मायने में युवा ही रहेगा। मनुष्य यदि दृढ़ संकल्प ले लें तो जीवन की दूसरी पारी में भी अपनी परिपक्व समझ, पारखी अनुभवों और सशक्त आत्म बल के साथ असंभव को भी संभव बना सकता है।

मनुष्य अपने जीवन में न जाने कितने कार्य अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक अपनी आत्मशक्ति और इच्छाशक्ति से करता है। कई बार कई कार्य जो युवा वर्ग भी नहीं कर पाते वो कार्य वृद्ध लोग कर लेते हैं।

ऐसे कई लोगों के उदाहरण देखने को मिल जाते हैं।

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपार आत्मशक्ति बनाए रखते हुए हमारे देश को स्वतंत्रता दिलाई। स्वतंत्रता संग्राम उन्होंने युवावस्था के बाद ही आरंभ किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शारीरिक रूप से भले ही बहुत बलशाली नहीं थे परंतु असीम इच्छाशक्ति के धनी थे।

महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी 75 वर्ष की आयु में भी बेहद सफल और सक्रिय हैं।

पंजाब में जन्मे फौजा सिंह जी वृद्धावस्था में भी  संकल्प और सफलता  का एक अनोखा उदाहरण है। उम्र को पीछे छोड़ते हुए दौड़ने वाले फौजा सिंह जी ने 101 वर्ष की उम्र में लंदन मैराथन में हिस्सा लिया और अब तक वो न जाने कितनी रिकार्ड्स अपने नाम कर चुके हैं।

प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर जी और आशा भोंसले जी 80 वर्ष की उम्र के पड़ाव में भी ऐसा गाती है जो आज के युवा गायकों को भी पीछे छोड़ दे।

प्रसिद्ध लेखक गुलजार साहब और जावेद अख्तर जी आज भी उत्तम से उत्तम लेखन में सक्रिय हैं।

इसलिए कहा जाता है कि,
"आप उतने ही युवा हैं जितना कि आप महसूस करते हैं।" 
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है,
"We don't stop playing because we grow old; we grow old because we stop playing." 
यानी कि "हम इसलिए खेलना नहीं छोड़ते क्योंकि हम बूढ़े हो जाते हैं बल्कि हम खेलना छोड़ देते हैं इसलिए बूढ़े हो जाते हैं।"

उम्र के साथ कार्यक्षमता भले ही घट जाये परंतु इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प के लिए उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती। जीवन को जीवंत बनाए रखने के लिए यह अति आवश्यक है कि मनुष्य अपनी आशावादी सोच और सकारात्मकता को सदैव बनाए रखे। जीवन में किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए लग्न, तत्परता, सकारात्मकता, साहस और आशावादी सोच की आवश्यकता है जिसका उम्र से कोई लेना-देना नहीं। सीखने की कोई उम्र नहीं होती इंसान यदि संकल्प ले ले तो वह किसी भी उम्र में कुछ भी सीख सकता है। तो आज से संकल्प लीजिए कि आप अपनी इच्छा शक्ति को कभी कम नहीं होने देंगे और अपनी अंदर की आत्मा की शक्ति को जगाए रखेंगे। 

युवा महसूस करें और अपने जीवन को जीवंत रखें। जब तक जीवन हो जीवन के साथ जियें और उदाहरण बनकर जीवन के बाद भी जियें। क्या पता समाज की साधारण सोच और उम्र के उस पार आपकी परिपक्व समझ और अनूठे अनुभवों द्वारा असंभव से संभव और साधारण से असाधारण रूप से प्राप्त की हुई उपलब्धियां अनेकों जीवन के लिए प्रेरणा बन जाएं।

इसी श्रंखला में इस कहानी को अवश्य पढ़ें जिसका शीर्षक है उम्र और सोच। कहानी के शीर्षक उम्र और सोच को क्लिक कीजिए और प्रेरणात्मक कहानी का आनंद लीजिए।

By- Dr. Anshul Saxena
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