सासू माँ
मेरे अल्हड़पन को गले से लगाना,
बातों पर मेरी मुस्कुराते जाना,
ना झल्लाना ना चिल्लाना,
गलतियों को भी प्यार से बताना।
कर्म भी पूजें धर्म भी पूजें,
हर रिश्ते को प्यार से सीचें,
सौम्य व्यवहार से सबको खींचे,
अपनापन कोई इनसे सीखें।।
बोली में जैसे मिश्री हो घोली,
अनूठा व्यक्तित्व जैसे रंगोली,
त्योहार हैं इनसे दिवाली या होली,
प्यार से भरती सबकी झोली।।
सहनशीलता का रूप है जो,
ममता का अतुल स्वरूप है वो,
आंचल में जिसके स्नेह का जहां है,
वो कोई और नहीं मेरी सासू मां है।।
Dr. Anshul Saxena
बातों पर मेरी मुस्कुराते जाना,
ना झल्लाना ना चिल्लाना,
गलतियों को भी प्यार से बताना।
कर्म भी पूजें धर्म भी पूजें,
हर रिश्ते को प्यार से सीचें,
सौम्य व्यवहार से सबको खींचे,
अपनापन कोई इनसे सीखें।।
बोली में जैसे मिश्री हो घोली,
अनूठा व्यक्तित्व जैसे रंगोली,
त्योहार हैं इनसे दिवाली या होली,
प्यार से भरती सबकी झोली।।
सहनशीलता का रूप है जो,
ममता का अतुल स्वरूप है वो,
आंचल में जिसके स्नेह का जहां है,
वो कोई और नहीं मेरी सासू मां है।।
Dr. Anshul Saxena
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