असली खुशी (Asli Khushi)

कहानी :असली खुशी

किरदार:  दिवाकर सिन्हा और मोहन


यह कहानी दो ऐसे व्यक्तियों पर आधारित है जिनकी सोच एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत थी। एक दिवाकर सिन्हा जो सरकारी अध्यापक हैं। दूसरा मोहन जो एक छोटी सी कंपनी में कोई छोटा मोटा काम करता है। 

दिवाकर वर्मा जी कुछ परेशान से अपने घर में इधर-उधर टहलते हुए अपने किसी दोस्त से फोन पर बातचीत करते हुए कहते हैं," अरे यार यह कोरोना ने कहां फंसा दिया? थोड़ी बहुत ट्यूशन आ रही थी वह भी आना बंद हो गई। ना कहीं आ सकते हैं न जा सकते हैं। खुद भी घर में बंद हो गये। इधर मेरी धर्मपत्नी भी इस बात को लेकर काफी परेशान है कि उन को मंदिर जाने को नहीं मिल रहा। और सही बात  भी है पूजा-पाठ के बिना मन को शांति कैसे मिले?" बातचीत में उनके दोस्त ने उधर से कुछ कहा जिसके उत्तर में दिवाकर जी बोले क्या बात कर रहे हो तुम्हारा धंधा भी मंदा हो गया? लाखों का धंधा हजारों में आ गया। पता नहीं कोरोनावायरस क्या क्या दिन दिखाएगा?"

 फोन पर बातचीत करते-करते दिवाकर को कुछ संगीत की ध्वनि सुनाई दी जो उन के घर के पीछे बने छोटे से घर से आ रही थी। यह घर मोहन का था जो एक किसी कंपनी में छोटी सी नौकरी करता है। उत्सुकता वश दिवाकर ने बाउंड्री से झांक कर देखा तो मोहन अपने बच्चों के साथ संगीत की धुन पर बड़ी खुशी के साथ नाच रहा था। 

expressionshub.co.in


दिवाकर से यह देख कर रहा नहीं गया और उन्होंने दूर से ही मोहन से पूछा, "मोहन ओ मोहन! 2 महीने से घर में पड़े हो। अब कट कटा के थोड़े बहुत पैसे मिलते हैं। आखिर किस बात की खुशी मना रहे हो?"


मोहन ने भी खुशी से जवाब दिया खुशियां पैसे की मोहताज कब से होने लगी,सर? मैं तो जिंदा रहने की खुशी मना रहा हूं। अभी मेरे पास खुश रहने की तमाम वजह हैं। रहने के लिए घर है।खाने के लिए खाना है। पहनने के लिए कपड़े हैं। एक स्वस्थ शरीर है। पूरा परिवार साथ में है। अब आप ही बताइए जब तक शरीर में है दम तब तक हैं हम। जब परिवार है संग तो किस बात का गम? जब तक जीवन है उसे भरपूर जीना चाहिए।" 

expressionshub.co.in


दिवाकर मोहन की बात सुनकर मुस्कुरा दिए और चुपचाप घर की ओर मुड़ गए। लेकिन मोहन की सोच ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि जब मोहन इतना खुश रह सकता है तो वह खुद क्यों नहीं? 

 दिवाकर के पास तो अच्छी खासी तनख्वाह आ रही थी। थोड़े बहुत ट्यूशन ना आने से वह इतने परेशान दिख रहे थे। मोहन की सोच ने दिवाकर को यह भी जता दिया कि पैसे की ताकत से बड़ी ताकत अपने शरीर और अपनों का साथ होता है। 

सही तो है इस संकट की घड़ी में भी खुश रहने की तमाम वजह हैं। क्यों ना जब तक जीवन है उसे पूरी तरह जिया जाए। जिंदगी में यदि कुछ नहीं है या कुछ नहीं मिल पा रहा है उसका दुख करने से अच्छा है जो है उसको बेहतर बनाया जाए और हर परिस्थिति में खुश रहा जाए।

Dr. Anshul Saxena

इस कहानी को सुनने के लिए शीर्षक को क्लिक कीजिए
असली खुशी



Comments

Arohi said…
Behtareen 👏👏this is the key to real happiness.😊

Popular Posts

गृहणी (Grahani)

नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

सलीक़ा और तरीक़ा (Saleeka aur Tareeka)

सुकून (Sukoon)

तानाशाही (Tanashahi)

बेटियाँ (Betiyan)

नव वर्ष शुभकामनाएं (New Year Wishes)

अभिलाषा: एक बेटी की

होली है (Holi Hai)

हर घर तिरंगा ( Har Ghar Tiranga)