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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

रिश्तों के पत्ते (Rishton ke Patte)



Rishton ke patte Hindi poem about relations in old age @expressionhub.co.in

रिश्तों के पत्ते

 वक्त की शाखाओं पे, रिश्तों के कुछ पत्ते,
 जिंदगी करते बयां, शाखों से जब झड़ते,
 कुछ सुनहरे सुर्ख तो, कुछ मायूस सूखे से,
 कुछ बड़े अनमोल थे तो कुछ बड़े सस्ते।

 जब थे हरे मुस्काते थे,
 तूफां भी सह जाते थे,
 हो गए कमजोर अब, गिरते ये सोचते,
 जाएगी जिस रुख़ भी हवा, जाएंगे उस रस्ते।

 जो कभी कोमल सा था, अब था कड़क एहसास,
 गिरना तो लाज़मी ही था; जब भी हुआ टकराव,
 जल जाए ढेर में या, दब जाएं पांव से,
 सब बिखरे अलग-थलग, कौन किसके वास्ते।


 कुछ लिए तीखी कसक, कुछ लिए धीमी सिसक,
 चाहा अगर फिर भी मगर, शाख ना पाए पकड़,
 गिरते नहीं झड़ते नहीं, यूं न मुरझाते,
 मिलती जो बारिश उन्स की, कुछ और टिक जाते॥
--Dr.Anshul Saxena

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