भाषा और बेटी (Bhasha Aur Beti)
जिस देश में जन्मी बड़ी हुई,
कोने में छुप के खड़ी हुई,
स्थान तलाशे वो अपना,
कागज़ में सिमटी पड़ी हुई।।
अपनों की पीढ़ी ठगती गई,
ग़ैरों की भाषा बढ़ती गई,
शिक्षा के जगत में पिछड़ गई,
अपनों से जैसे बिछड़ गई।।
तुम ठुकराओगे
तो कौन अपनाएगा?
लगातार तिरस्कार
कब रुक पाएगा?
भाषा और बेटी गर्व हैं सम्मान हैं,
देश का ये गौरव देश का ये मान हैं,
सत्य चुभेगा कड़वा लगेगा,
अपने ही घर में ये पराई समान हैं।।
Dr.Anshul Saxena
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~आदित्य