माँ-बाप (Maa-Baap)

              माँ-बाप

Hindi poem about maa-baap, old people's condition




माँ-बाप जिन्हें चलना बोलना सिखाते हैं,

क्यों बड़े हो बच्चे उन से ही बड़े हो जाते हैं?

जो निःस्वार्थ त्याग कर इनका जीवन बनाते हैं 

क्यों उन की परवरिश पर बच्चे सवाल उठाते हैं?

जब हम गिर जाते थे, 
यही हमें उठाते थे।
जब हम रुक जाते थे,
यही हमें बढ़ाते थे।

बच्चों का यह कहना दिल छलनी कर जाता है,
अरे, आपको उठना बैठना भी नहीं आता है।
जो बच्चों पे अपना जीवन लुटाते हैं
लेते नहीं कुछ बस दुआएं दे जाते हैं
उनकी सेवा से बच्चे क्यों हिचकिचाते हैं?
उनके जीवन कैसे निजी हो जाते हैं?

वो कभी नहीं थके,
ताकि हम हँस सकें।
वो कभी नहीं रुके,
ताकि हम बढ़ सकें।

उनका दिल बार-बार तार-तार हो जाता है,
जब बच्चे कहें आपको इतना भी नहीं आता है।
माँ-बाप का किया तो फ़र्ज बताते हैं,
जो खुद करें उसे बार-बार जताते हैं।
सब कुछ लुटा के जो बच्चों को बनाते हैं,
क्यों वो ही दर-दर की ठोकरें खाते हैं?

संभल जाओ लाडलों वक़्त है अभी,
एक बार जो गए फिर ना आएंगे कभी,
तब तुम समझोगे जुदाई क्या है?
पूछते हो आपने किया ही क्या है?

माँ-बाप  का कर्ज़ कभी चुका ना सकोगे,
असम्मान कर कहीं मान पा ना सकोगे,
दौलत और शोहरत कितनी भी कमा लो,
कड़वा लगे भले यह भुला ना सकोगे,
माँ-बाप ही हमारी सच्ची दौलत हैं।
आज हम जो भी हैं उन्हीं की बदौलत हैं।।

Dr.Anshul Saxena 

Comments

Anonymous said…
वाह अति उत्तम!
Dr.sonil said…
बहुत उम्दा रचना। सटीक कटाक्ष।
Dr.sonil said…
बहुत उम्दा रचना। सटीक कटाक्ष।
धन्यवाद😊
Pratap said…
Bahut sundar rachna likhi hai aapne. Wah

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