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सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।
Ishq (इश्क़ )
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इश्क़
प्रेम के भी अनगिनत रूप हैं। किसी को होता नहीं है और किसी का जाता नहीं है। कोई प्यार में मर कर भी जी जाता है और युगों युगों तक ताजमहल जैसी निशानियां छोड़ जाता है और कोई जीते जी भी मर जाता है। लेकिन अगर कुछ रह जाता है तो वह है प्रेम।
मैंने भी इस प्रेम को अपनी कल्पना में उभारा है। शब्दों से इसके चित्र को बनाया है मिटाया है प्रस्तुत है कुछ और झलकियां।
सुना है तनहाई में मुझे याद करते हो,
कलियों और बागवाँ से मेरी बात करते हो,
खोकर भी तुमने कुछ नहीं हारा है,
मुकम्मल ना सही पर इश्क़ तो तुम्हारा है।।
तुम्हें पाकर भी तुम्हें ना खोती,
तुम्हारी ना होकर भी तुम्हारी ना होती,
अगर इश्क़ की कोई उम्र ना होती,
तो तेरे नाम की धड़कन ता उम्र ना होती।।
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अभिलाषा: एक बेटी की
छल कपट से दूर जहां की, मेरी दुनिया अच्छी है, झूठ जहां ना बसता है, दिल की बेहद सच्ची है । तेरी समझ से मेरी समझ, मेरी समझ में तेरी समझ, समझ में आना मुश्किल है, हर दिन मेरी नई राह है, दूर बड़ी ही मंजिल है। मेरी कोशिश मेरी क्षमता कोई तो पहचाने, कितना कुछ में जाने हूं, क्यों कोई ये ना जाने, मेरी अपनी बोली है, मेरी अपनी भाषा है, समझो मेरे भावों को, बस इतनी अभिलाषा है। बस इतनी अभिलाषा है। By:- Dr.Anshul Saxena
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उम्र और सोच- एक कहानी सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ दो पुराने दोस्त अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे। "वो भी क्या दिन थे शर्मा लगता है कल की ही बात थी जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था और फिर पलट के वापस नहीं देखा। और आज देखो रिटायर भी हो गए। मानो वक्त गति के पंख लगाकर उड़ता ही चला गया। आज अपने बेटे विकास को देखता हूं तो अपनी छवि नज़र आती है, उसके काम करने के अंदाज में.. अब तो बस आराम करना है। मैं,तुम, खुराना और अपने कुछ दोस्त एक दूसरे के साथ अपना वक्त बिताया करेंगे क्यों सही कहा ना?" शर्मा जी: "एकदम सही कहा वर्मा जी हा हा हा हा.." "पुराने दोस्तों से याद आया यार शर्मा अपने रमेश और किशोर कहां होंगे कैसे दिखते होंगे? अरसा हो गया उन को देखे हुए। है ना?" वर्मा जी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा। तभी वर्मा जी का बेटा विकास अपना फोन लेने ड्राइंग रूम में आया और बोला, "पापा मैंने कब से आपका Facebook पर अकाउंट बनाया हुआ है आप चेक ही नहीं करते।" वर्मा जी: "अरे बेटा अब ये social media वगैरह सीखने की उम्र थोड़े ना रह गय
आजकल हर शख़्स व्यस्त है?
आज कल हर शख़्स व्यस्त है, कोई हकीक़त में तो कोई यूं ही व्यस्त है, कोई व्यस्तता में तो कोई मस्ती में मस्त है, कहीं मजबूरी तो कहीं ज़िम्मेदारी की गिरफ़्त है। आज कल हर शख़्स व्यस्त है। कौन कितना और कहां व्यस्त है? कि वक़्त पर वक़्त देने का नहीं वक़्त है, झूठे दिखावों पे रिश्तों की शिक़स्त है, आज कल हर शख़्स व्यस्त है। कोई बहुत करके भी कुछ और करने में व्यस्त है, कोई बेवजह वजह ढूंढने में व्यस्त है, कोई वक़्त की सुईओं का सलीक़े से अभ्यस्त है, कोई बेपरवाह सा मौज में अस्त व्यस्त है, आज कल हर शख़्स व्यस्त है। आज कल हर शख़्स व्यस्त है।
अनोखे नौजवान (Anokhe Naujawan)
अनोखे नौजवान बैठे-बैठे खा लें इनसे मेहनत कौन कराए काला चश्मा नीची जींस सब पर रौब जमाएं। बाप की जेबें रोज ये ऐंठें धुआं रोज उड़ाएं ऐसे वैसे ऐश करा लो पैसे कौन कमाए। सड़क के चक्कर लगा के अक्सर खिचड़ी नई पकाएं खाते ताने ये मनमाने फिर भी ना पछताएं। पढ़ाई में जीरो बनते हीरो फैशन इनको भाये कभी धुनें ये कभी पिटें ये ऐसे नाम कमाएं। इधर दी रिश्वत उधर दी घूस डिग्री लेकर आए
ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है
ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है तू कभी हंसती है तो कभी रोती है ए ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है। भुला दो सारे शिकवे गिले जो अपने हो उन्हें लगा लो गले जी भर के जी लो आज अभी क्या पता कल मिले ना मिले कल की ना दे ख़बर सपने मग़र बोती है ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बड़ी छोटी है।। किसी से रूठे हो तो उसे मना लो दिल में हो प्यार तो उसे जता दो क्या लिया क्या दिया ये हिसाब छोड़कर जो हो तुम्हारे पास बेहिसाब लुटा दो कर लो अगर क़दर तो आंसू भी मोती है ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है।। Dr.Anshul Saxena
सच्चा गुरु (Sachcha Guru)
गुरु वही जो सीख सिखा दे, जीने की तरकीब बता दे, जीवन पथ के अंधियारों में, आशाओं की ज्योत जला दे।। लक्ष्य भेदकर नभ छूने सा, शंखनाद मन में करवा दे, भूले भटके अनजानों को, सही मार्ग को जो दिखला दे।। गुरु वही जो सीख सिखा दे... ज्ञान जो बाँटे बहुत मिलेंगे, गुरु कहो जिसे बहुत मिलेंगे, दृढ़ संकल्प की नवलय का नवगीत तुम्हारे ह्रदय जगा दे, पुस्तक ज्ञान से ऊपर उठ, जो जीने का उद्देश्य बता दे, कर नमन उन गुरुओं को, आदर से यह शीश नवा दे।। शिक्षा का व्यापार करे जो, स्वार्थ हेतु आघात करे जो, आशाओं और अभिलाषाओं का, निर्मम तुषारापात करे जो; कोमलता को रौंद रौंदकर, शिक्षक भक्षक बन कर जब, मर्यादा का अर्थ भुलाकर, आदर्शों को जो झुठला दे; ऐसे ढोंगी गुरुओं को सतगुरु सत का पाठ पढ़ा दे🙏 उन अंतर्मन के रावण पर राम नाम की विजय करा दे।।🙏 By-Dr.Anshul Saxena इस कविता को एक बार सुनिए जरूर-
कोरोना वायरस
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Dr.Anshul Saxena
आजकल करोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसे अफरा-तफरी के माहौल में कुछ पंक्तियां अवश्य पढ़ें👇 कोरोना कोरोना अब बस भी करो ना जहां से हो आए वहीं जाके मरो ना। सांप चमगादड़ हम नहीं खाते, नमस्ते हैं करते हम आते जाते, सीधा-साधा देश हमारा, कोई दो रोटी खाता मजदूर बेचारा, कोई तंगी से हारा कोई मंदी से हारा। बख्श दो इन्हें अब बस भी करो ना, जहां से आए हो वही जाके मरो ना।। एक काम तुमने नेक है किया, जो लड़ रहे थे उन्हें एक है किया, अब सब मिलकर तुझ से लड़ेंगे, एक रहे हैं एक रहेंगे।। दुनिया से ले विदा हमें खुशियों से भरो ना, कोरोना कोरोना,अब बस भी करो ना।। इसी कविता को हल्के-फुल्के तौर पर मैंने इस प्रकार व्यक्त किया है👇😊
रिश्तों के पत्ते (Rishton ke Patte)
रिश्तों के पत्ते वक्त की शाखाओं पे, रिश्तों के कुछ पत्ते, जिंदगी करते बयां, शाखों से जब झड़ते, कुछ सुनहरे सुर्ख तो, कुछ मायूस सूखे से, कुछ बड़े अनमोल थे तो कुछ बड़े सस्ते। जब थे हरे मुस्काते थे, तूफां भी सह जाते थे, हो गए कमजोर अब, गिरते ये सोचते, जाएगी जिस रुख़ भी हवा, जाएंगे उस रस्ते। जो कभी कोमल सा था, अब था कड़क एहसास, गिरना तो लाज़मी ही था; जब भी हुआ टकराव, जल जाए ढेर में या, दब जाएं पांव से, सब बिखरे अलग-थलग, कौन किसके वास्ते। कुछ लिए तीखी कसक, कुछ लिए धीमी सिसक, चाहा अगर फिर भी मगर, शाख ना पाए पकड़, गिरते नहीं झड़ते नहीं, यूं न मुरझाते, मिलती जो बारिश उन्स की, कुछ और टिक जाते॥ -- Dr.Anshul Saxena
क़त्ल (Katl)
क़त्ल (Katl) बाहर शोर और मेला है, अंदर मन मौन अकेला है, जब अंदर यह घबराता है, एक खंजर खून बहाता है। रोक लो खून को बहने से, अपनों को घायल होने से, अनजाने में अपनों का कोई, अपना कातिल बन जाता है।। कोई भरा हुआ है भावों से, बस भावुक सा हो जाता है, तुम ना समझे तो क्या होगा, यह सोच के वो कतराता है।। थोड़ा हंस लो थोड़ा सह लो, कुछ वो कह दे कुछ तुम कह लो, किसका क्या चला जाता है, ग़र इक जीवन बच जाता है।।
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