Ishq (इश्क़ )

 

            इश्क़

प्रेम के भी अनगिनत रूप हैं। किसी को होता नहीं है और किसी का जाता नहीं है। कोई प्यार में मर कर भी जी जाता है और युगों युगों तक ताजमहल जैसी निशानियां छोड़ जाता है और कोई जीते जी भी मर जाता है। लेकिन अगर कुछ रह जाता है तो वह है प्रेम। 

मैंने भी इस प्रेम को अपनी कल्पना में उभारा है। शब्दों से इसके चित्र को बनाया है मिटाया है प्रस्तुत है कुछ और झलकियां।

सुना है तनहाई में मुझे याद करते हो,
कलियों और बागवाँ से मेरी बात करते हो,
खोकर भी तुमने कुछ नहीं हारा है,
मुकम्मल ना सही पर इश्क़ तो तुम्हारा है।।




तुम्हें पाकर भी तुम्हें ना खोती,
तुम्हारी ना होकर भी तुम्हारी ना होती,
अगर इश्क़ की कोई उम्र ना होती,
तो तेरे नाम की धड़कन ता उम्र ना होती।।




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