Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

 सशक्त नारी

एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है।


कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है।


नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है।


नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां-


ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई,
मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई,
तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है,
अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

Sashakt Naari A poem about Woman @expressionshub.co.in by Dr.Anshul


Comments

Anonymous said…
Awesome lines. Bahut sundar
Anonymous said…
इतने कम शब्दों में नारी का इतना सटीक वर्णन अति उत्तम👍👏👏👏👏
Anonymous said…
Very beautiful...
Sudha Devrani said…
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सटीक लेखन।
Anonymous said…
ज़िद थी उड़ान की ………
👌🏻👌🏻 लाजवाब 👌🏻👌🏻
हार्दिक धन्यवाद और आभार🙏
शुक्रिया🙏
हार्दिक आभार
Anonymous said…
Kaash kabhi pehle nasamajh ko kisi ne samjhaya hota….. 🙏

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