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एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena
गृहणी (Grahani)
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गृहणी (Grahani)
समाज में अपनी अहम भूमिका निभाने वाली एक ऐसी स्त्री जो शिक्षित भी है, काबिल भी है, जिसके अपने सपने भी हैं लेकिन उन सब से ऊपर उसके अपने भी हैं। जो अपना घर सजाने और बच्चों को बनाने में अपने सपने और अपनी ख्वाहिशों का हंसते-हंसते बलिदान दे देती है और फिर भी उसके बारे में बहुत कुछ अनकहा रह जाता है।
मेरा एक छोटा सा प्रयास है उस स्त्री के बारे में कुछ कहने का जिसका पूरा घर ऋणी होता है और जिसे गृहणी कहते हैं।
कभी तंगी में कभी मंदी में
कभी बंधन में पाबंदी में
कभी घर गृहस्थी के धंधे में
कभी कर्तव्यों के फंदे में,
ख्वाहिश उसकी झूल गई।
अपनों की परवाह करने में,
वह खुद खुद को ही भूल गई।
दूर पास के रिश्ते में
महंगा राशन हो सस्ते में
बच्चों और उनके बस्ते में
दिन भर वो उलझी रहती है
खाली रहती हो,
क्या करती हो?
ताने सुनती रहती है।
तानों के ताने-बाने में
घर अपना स्वर्ग बनाने में
जीवन अपना ही भूल गयी।
अपनों की परवाह करने में,
वह खुद खुद को ही भूल गई।
दिन दिन भर वो काम करे,
सोचे वो कब आराम करे?🤔
छुट्टी नहीं पगार नहीं,
उसका कोई इतवार नहीं।
पुरुषों से जिसका तोल नहीं,
अनमोल है उसका मोल नहीं।
ॠणी हैं सब उस गृहणी के
दुनिया यह कैसे भूल गयी?
अपनों की परवाह करने में,
जो खुद खुद को ही भूल गई।
Dr.Anshul Saxena
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वाह बहुत खूब नारी के हर पहलू को आपने अपनी कविताओं में बहुत अच्छे से वर्णित किया है। 👏👏👏👏
ReplyDeleteThank you so much!
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