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एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena
याद-पीहर की
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याद-पीहर की
बचपन को जहाँ बोया था मैंने,
यादों को जहाँ संजोया था मैंने,
लाँघ वो दहलीज़ पीहर छोड़ा था मैंने,
जब एक अटूट बंधन जोड़ा था मैंने,
हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है,
ईंट और दीवार की भी याद आती है।।
बरसों बरस जहाँ बिता दिये मैंने,
बरसों से वो आंगन देखा नहीं मैंने,
मन की चिररइया जब तब वहां घूम आती है,
कभी कभी आँख जब झपकी लगाती है।।
वो मोड़ वो राह तब छोड़ दी मैंने,
ज़िम्मेवारी की चादर जब ओढ ली मैंने,
वो हंसी ठिठोली आज भी बड़ा गुदगुदाती है,
बीते हुए लम्हों की जब आवाज़ आती है।।
भाई बहन वो बिछड़ी सहेली,
झूठी शिक़ायतों वाली मीठी सी बोली,
तपते बुख़ार में पिता की हथेली,
माँ की स्नेह और परवाह वाली झोली,
कौन सी बेटी ये भूल पाती है
पीहर की डोर कब छूट पाती है।।
हर पुरानी चीज़ की जब बात आती है,
ईंट और दीवार की भी याद आती है।।
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गृहणी (Grahani)
गृहणी (Grahani) समाज में अपनी अहम भूमिका निभाने वाली एक ऐसी स्त्री जो शिक्षित भी है, काबिल भी है, जिसके अपने सपने भी हैं लेकिन उन सब से ऊपर उसके अपने भी हैं। जो अपना घर सजाने और बच्चों को बनाने में अपने सपने और अपनी ख्वाहिशों का हंसते-हंसते बलिदान दे देती है और फिर भी उसके बारे में बहुत कुछ अनकहा रह जाता है। मेरा एक छोटा सा प्रयास है उस स्त्री के बारे में कुछ कहने का जिसका पूरा घर ऋणी होता है और जिसे गृहणी कहते हैं। कभी तंगी में कभी मंदी में कभी बंधन में पाबंदी में कभी घर गृहस्थी के धंधे में कभी कर्तव्यों के फंदे में, ख्वाहिश उसकी झूल गई। अपनों की परवाह करने में, वह खुद खुद को ही भूल गई। दूर पास के रिश्ते में महंगा राशन हो सस्ते में बच्चों और उनके बस्ते में दिन भर वो उलझी रहती है खाली रहती हो, क्या करती हो? ताने सुनती रहती है। तानों के ताने-बाने में घर अपना स्वर्ग बनाने में जीवन अपना ही भूल गयी। अपनों की परवाह करने में, वह खुद खुद को ही भूल गई। दिन दिन भर वो काम करे, सोचे वो कब आराम करे?🤔 छुट्टी नहीं पगार नहीं, उसका कोई इतवार नहीं। पुरुषों से जिसका तोल नहीं,
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ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है तू कभी हंसती है तो कभी रोती है ए ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है। भुला दो सारे शिकवे गिले जो अपने हो उन्हें लगा लो गले जी भर के जी लो आज अभी क्या पता कल मिले ना मिले कल की ना दे ख़बर सपने मग़र बोती है ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बड़ी छोटी है।। किसी से रूठे हो तो उसे मना लो दिल में हो प्यार तो उसे जता दो क्या लिया क्या दिया ये हिसाब छोड़कर जो हो तुम्हारे पास बेहिसाब लुटा दो कर लो अगर क़दर तो आंसू भी मोती है ऐ ज़िंदगी तेरी उम्र बहुत छोटी है।। Dr.Anshul Saxena
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Very very heart touching words.man ki Baaton ki shabdon ke dwara bahut sunder abhivyakti.
ReplyDeleteThank you so much for your comments 😊🙏
DeleteBeyond words....awesome awesome n awesome...very toching intense n bhavyukt rachna👌👌👌👌👌
ReplyDeleteThanks a lot😊🤗
Deleteबहुत ही उत्तम रचना है।
ReplyDeleteहम भी आपका सृजन देखकर सीखने की कोशिश कर रहे हैं ..
धन्यवाद!
Deleteआप तो स्वयं उत्तम रचनायें लिखते हैं।