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बिकाऊ रिश्ते (Bikau Rishte)
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बिकाऊ रिश्ते
आज का ज़माना पहले से कुछ अलग है। महंगाई के इस दौर में हर चीज महंगी बिकती है। इस सूची में रिश्ते भी शामिल हैं। जितना महंगा रिश्ता उतनी मेहमान नवाज़ी।
पहले ज़माने में सुविधाएं भले ही कम थी लेकिन रिश्तों में ठहराव और गहराई होती थी। मिलना जुलना औपचारिक नहीं होता था। त्योहारों में खोखला पन नहीं था। पहले सामने झगड़े होते थे लेकिन मनमुटाव क्षणिक होता था। दिलों की मिठास कम नहीं होती थी। अब दिलों की खटास दिखावे की चाशनी में परोसी जाती है।
कह सकते हैं कि
दिल में अब नमी नहीं है
पर दिखावे में कमी नहीं है।
जिसको यह बात अभी तक समझ ना आई हो तो नासमझ होना ही बेहतर है।
नासमझी ही बेहतर है ना होना समझदार
समझ गए तो समझोगे रिश्तों का व्यापार
आज के समय में महाकवि तुलसीदास जी का कथन हमेशा याद रखना चाहिए
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।
जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह
में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहां स्वर्ण बरस रहा हो।
इन्हीं सब विचारों को कुछ पंक्तियों में कहने का प्रयास किया है। आप सब भी अपने अनुभव कमेंट बॉक्स साझा करें।🙏
अब बिक रहे रिश्ते खुलेने लगी दुकान,
हो तोल मोल कर मेहमान का सम्मान,
है चाशनी लिपटी फ़ीके मगर पकवान,झूठा दिखावा है झूठी दिखाएं शान।।
सुनते ही नहीं ये आपकी अपनी ही हाँकते,
काम पड़ जाए तो बगलें ये झांकते,
बस दूर से ही साथ हैं फ़ीकी लिए मुस्कान,
अब बिक रहे रिश्ते खुलने लगी दुकान।
अब बिक रहे रिश्ते खुलने लगी दुकान।।
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Comments
Wah! रिश्तो की सच्चाई बहुत अच्छे से व्यक्त की है
ReplyDeleteThank you so much!
DeleteBitter truth.... it's a result of growing materliasm n lack of values. But ... well composed 👌👌
ReplyDeleteThank you so much!🙏😊
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