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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

सावन (Saawan)

 


                        सावन 


Hindi kavita Saawan @expressionshub.co.in



भीगी सी रुत में वो सावन बरसना।
मतवाली हो फिर धरा का महकना।।
तृप्ति दे तपती धरा की तपन को,
वो ठंडी पवन और मेघों का गरजना।।

वो बारिश की बूंदों का मिट्टी पर पड़ना ,
वह सोंधी सी खुशबू का हौले से उड़ना,
कोयल और मैना का खिल के चहकना,
पत्तों के झुरमुट में उड़ के सिमटना,
भीगी सी रुत में वो सावन बरसना।
मतवाली हो फिर धरा का महकना।।

वो सतरंगी रंगों का नभ में निखरना,
अनुपम छटा का धरा पर बिखरना,
काली घटा का घुमड़ कर बरसना,
तृप्ति ले बिसरा दे चातक तरसना।।
भीगी सी रुत में वो सावन बरसना।
मतवाली हो फिर धरा का महकना।।

वो नन्हे से बीजों में कोपल का फटना,
वह बूंदों से जल में तरंगों का उठना,
वो प्रेमी के दिल में उमंगें उभरना,
मनमोहक मयूरा को भाये थिरकना।।
भीगी सी रुत में वो सावन बरसना।
मतवाली हो फिर धरा का महकना।।


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