Khand (खंड)

 Khand (खंड)

हमारे देश को आज़ादी मिले हुए तो कई वर्ष बीत गए लेकिन विचार अभी भी जंजीरों में जकड़े हुए हैं। क्या नेता क्या जनता?  जब तक धर्म और जात पात का कंकड़ आंखों में पड़ा रहेगा सामने सब कुछ किरकिरा ही नजर आएगा। आंख के बदले आंख में तो पूरा देश ही अंधा हो जाएगा।


चल रहे हैं झुंड में,
सिर उठा घमंड में।
विचार है जंजीर में
सोच मुट्ठी बंद में।।


धर्मार्थ में या स्वार्थ में,
जात में  हर बात में
बांटते और काटते
देश खंड खंड में।।


मुश्किल से आजाद हुए,
बंटवारे उसके बाद हुये,
कब तक रहोगे जंग में?
कब चलोगे संग में?


बांटते और काटते,
देश खंड खंड में।।

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