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नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

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 एक चिंगारी नारी अभिमान की आवाज़ में कभी रीति में रिवाज़ में भक्ति है जो उस नारी को शक्ति जो उस चिंगारी को जितना भी उसे दबाओगे एक ज्वाला को भड़काओगे। उस अंतर्मन में शोर है बस चुप वो ना कमज़ोर है जितना तुम उसे मिटाओगे उतना मजबूत बनाओगे। बचपन में थामा था आंचल वो ही पूरक वो ही संबल तुम उसके बिना अधूरे हो तुम नारी से ही पूरे हो जितना तुम अहम बढ़ाओगे अपना अस्तित्व मिटाओगे। By- Dr.Anshul Saxena 

अपने (Apne)

Apne

भले ही तेरे नहीं किसी और शहर में रहते हैं,
कभी तेरे दिल दिमाग तो कभी नज़र में रहते हैं,
कहां ढूंढता फिरता है तू अपनों को बावले,
जिधर तू रहता है तेरे अपने.. उधर रहते हैं।।
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