धर्म-कर्म
धर्म-कर्म
खड़े अचंभित हुए निरुत्तरताकतवर इंसान।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे,
आज पड़े वीरान।
धर्म का चोला पहन अधर्मी,
व्यर्थ बांटते ज्ञान।
जैसा कर्म करोगे वैसा,
फल देगा भगवान।।
हर धर्म पढ़ाये मानवता,
हर धर्म का हो सम्मान।
धर्म नाम पर स्वार्थ साध,
मत फैलाओ अज्ञान।
अंधभक्त जो तुम्हें मानते,
भटक गए नादान।
धर्म तुम्हारी नहीं विरासत,
ईश्वर अल्लाह एक समान।।
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