इंसानी धर्म
मानवता का धर्म सबसे बड़ा धर्म है। मेरी यह कविता किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष के विरोध में नहीं बल्कि एक संदेश मात्र है उन लोगों के लिए जो मानव धर्म का उल्लंघन करते हैं।
थोड़े तो इंसान बनो,
खुदगर्ज़ हुए ख़ुद ख़ुदा हुए,
इतना ना अभिमान करो।।
इंसानी धर्म पे थू थू करते,
फिर कौन से धर्म के क़लमे पढ़ते,
ख़ुद खुदा तुम्हें ना बख्शेगा?
तुम कितना भी क़ुरान पढ़ो।।
कौन जमात से आते हो,
कौन से मुल्क़ की खाते हो?
जिस मिट्टी से तुम जन्मे हो,
उसका तो सम्मान करो।।
खुदगर्ज़ हुए ख़ुद ख़ुदा हुए,
इतना ना अभिमान करो।।
इंसानी धर्म
उसने इंसान बनाया है,थोड़े तो इंसान बनो,
खुदगर्ज़ हुए ख़ुद ख़ुदा हुए,
इतना ना अभिमान करो।।
इंसानी धर्म पे थू थू करते,
फिर कौन से धर्म के क़लमे पढ़ते,
ख़ुद खुदा तुम्हें ना बख्शेगा?
तुम कितना भी क़ुरान पढ़ो।।
कौन जमात से आते हो,
कौन से मुल्क़ की खाते हो?
जिस मिट्टी से तुम जन्मे हो,
उसका तो सम्मान करो।।
खुदगर्ज़ हुए ख़ुद ख़ुदा हुए,
इतना ना अभिमान करो।।
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