दूरी और मजबूरी


आज देश भर में फैल रहे कोरोनावायरस से हुए लॉक डाउन के कारण लोगों में खुद को सुरक्षित रखने का एक डर सा बैठ गया है। सुरक्षा की दृष्टि से रखी जाने वाली दूरी लोगों की मजबूरी भी बनती जा रही है। प्रस्तुत है आज की कविता

 दूरी और मजबूरी

कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया,
अपनों को अपनों से दूर कर दिया।

खुद की फिक्र ने बेटे को ऐसा डराया,
पिता का भी अंतिम संस्कार न कर पाया,
नर्स माँ ने बच्चे को गले नहीं लगाया,
कोई रह गया अकेला परिवार से ना मिल पाया,
एक बदलाव सोच में जरूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।

खुद से खुद का मिल गया पता,
बरसों से जो दबा था सब दिया जता,
सच के आईने ने हक़ीकत ये दी बता,
पैसे से वक्त कीमती सबको लगा पता,
झूठे दिखावों को चकनाचूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।

वो करें पहल उम्मीद ये छोड़ो,
जिस राह लगता दिल उस राह दिल मोड़ो,
ऊंची अगर अहम की दीवार वो तोड़ो,
टूटते और छूटते रिश्तो को अब जोड़ो,
ऐसा क्या जिंदगी ने क़सूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।
Dr. Anshul Saxena
Hindi kavita Duri aur majboori @expressionshub.co.in

Comments

Popular Posts

गृहणी (Grahani)

नारी - एक चिंगारी ( Naari Ek Chingari)

सलीक़ा और तरीक़ा (Saleeka aur Tareeka)

सुकून (Sukoon)

तानाशाही (Tanashahi)

बेटियाँ (Betiyan)

नव वर्ष शुभकामनाएं (New Year Wishes)

अभिलाषा: एक बेटी की

होली है (Holi Hai)

हर घर तिरंगा ( Har Ghar Tiranga)