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Sashakt Naari ( सशक्त नारी)

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 सशक्त नारी एक नारी के जीवन के विविध रंग जितने दिखते हैं उससे कहीं अधिक गहरे होते हैं। नारी का अस्तित्व उसकी योग्यता या अयोग्यता को सिद्ध नहीं करता बल्कि जीवन में उसके द्वारा किए गए त्याग और उसकी प्राथमिकताओं के चुनाव को दर्शाता है। कहते हैं जीवन में सपना हो तो एक ज़िद होनी चाहिए और इस ज़िद पर डट कर अड़े रहना होता है। लेकिन एक नारी कभी सपने हार जाती है तो कभी सपनों को पूरा करने में अपने हार जाती है। नारी तो कभी अपने बच्चों में अपने सपने ढूंढ लेती है तो कभी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठाकर अपनी खुशियों का बहाना ढूंढ लेती है। ऐसे में कभी कभी वह परिस्थितियों से छली जाती है तो कभी अपनों से ठगी जाती है। नारी के त्याग को उसकी कमज़ोरी समझने वालों के लिए  प्रस्तुत हैं मेरी यह चार पंक्तियां- ज़िद थी उड़ान की मगर अड़ नहीं पाई, मतलबी चेहरों को कभी पढ़ नहीं पाई, तुम क्या हराओगे उसे जो हर हार जीती है, अपनों की बात थी तो बस लड़ नहीं पाई।।

दूरी और मजबूरी


आज देश भर में फैल रहे कोरोनावायरस से हुए लॉक डाउन के कारण लोगों में खुद को सुरक्षित रखने का एक डर सा बैठ गया है। सुरक्षा की दृष्टि से रखी जाने वाली दूरी लोगों की मजबूरी भी बनती जा रही है। प्रस्तुत है आज की कविता

 दूरी और मजबूरी

कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया,
अपनों को अपनों से दूर कर दिया।

खुद की फिक्र ने बेटे को ऐसा डराया,
पिता का भी अंतिम संस्कार न कर पाया,
नर्स माँ ने बच्चे को गले नहीं लगाया,
कोई रह गया अकेला परिवार से ना मिल पाया,
एक बदलाव सोच में जरूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।

खुद से खुद का मिल गया पता,
बरसों से जो दबा था सब दिया जता,
सच के आईने ने हक़ीकत ये दी बता,
पैसे से वक्त कीमती सबको लगा पता,
झूठे दिखावों को चकनाचूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।

वो करें पहल उम्मीद ये छोड़ो,
जिस राह लगता दिल उस राह दिल मोड़ो,
ऊंची अगर अहम की दीवार वो तोड़ो,
टूटते और छूटते रिश्तो को अब जोड़ो,
ऐसा क्या जिंदगी ने क़सूर कर दिया।
कोरोना ने कैसा मजबूर कर दिया।।
Dr. Anshul Saxena
Hindi kavita Duri aur majboori @expressionshub.co.in

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