परवाह (Parvah)
तो इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत है आज की हिंदी कविता
परवाह
यह जीवन रैन बसेरा है,
सुख दुख का यहां डेरा है,
मर कर तुम साथ चलो ना भले,
जीते जी साथ निभा देना।।
कहीं परिवारों का मेला है,
कोई अपना दूर अकेला है,
तुम पास भले ना जा पाओ,
पर दूर से साथ निभा देना।।
भावों में कोई बह जाए
तो तुम बाँध बना देना।।
तन से साथ रहो न भले,
पर मन से साथ निभा देना।।
कहीं तड़प है भूखे पेटों की,
कहीं कमी नहीं है नोटों की,
जिससे जितना बन पाये,
उन भूखों तक पहुंचा देना।।
मानवता की खेती का,
इस धरती पर जहाँ सूखा हो,
प्रेम दया के मेघों को,
उस धरती पर बरसा देना।।
Dr. Anshul Saxena
सुख दुख का यहां डेरा है,
मर कर तुम साथ चलो ना भले,
जीते जी साथ निभा देना।।
कहीं परिवारों का मेला है,
कोई अपना दूर अकेला है,
तुम पास भले ना जा पाओ,
पर दूर से साथ निभा देना।।
भावों में कोई बह जाए
तो तुम बाँध बना देना।।
तन से साथ रहो न भले,
पर मन से साथ निभा देना।।
कहीं तड़प है भूखे पेटों की,
कहीं कमी नहीं है नोटों की,
जिससे जितना बन पाये,
उन भूखों तक पहुंचा देना।।
मानवता की खेती का,
इस धरती पर जहाँ सूखा हो,
प्रेम दया के मेघों को,
उस धरती पर बरसा देना।।
Dr. Anshul Saxena
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